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माँ अब बड़ी हो गई है।

माँ अब बड़ी हो गई है।  मेरे बाद  वो सीख गई है घर से निकलना , सड़क के किनारे  मेरा हाथ बिन थामे टहलना चौराहों पर गाड़ियों की आवा जाहि से अब बढ़ती नहीं उसकी धड़कने  अब सीख गई है सही समय पर  सही सलीके से सही बस स्टॉप पर उतरना ये अच्छा है कि हर बार घर पहुँचने की जल्दीबाज़ी या कहूँ की घबराहट में  अपने जोड़ों में पैठे दर्द की ख़ातिर  वो अब सीख गई है दौड़ते भागते  ठहरना वो कर लेती है अब धड़ल्ले से  सब्जियों में सारे मोल भाव सह लेती है अब अकेले वक़्त के तमाम धूप छाँव अब वो घबरा कर मुझसे लिपटती नहीं मैंने देखा है अब डर से वो सिमटती नहीं कई दफ़ा सब देख मैं स्तब्ध होती हूँ जिसे कभी अकेले रहना भाता न था बिन मेरे कोई निवाला गले से जाता न था अब वो अकेली बैठ "भात" पकाती है अब वो अकेली बैठ मन  बहलाती है माँ अब बड़ी हो गई है  वाकई  माँ अब बड़ी हो गई है  पर  कुछ बातें अब भी अच्छी है  गरमा गर्म फुलौरियों के लिए  वो अब भी बच्ची है। ऐसी कितनी ही बातें जाने क्या क्या याद दिलाती है  अब जब कभी माँ मुझे अपने घर बुलाती है। ©प्रियंका सिंह