😣😣😣😣😣😣😣😣😣😣😣 एक अँधेरे से निकलता विशालकाय शरीर, देखो इसे..और पहचानो , ये मैं हूँ.... मैं- एक पुरुष, एक ताकतवर पुरुष जिसके अहम के पंजों तले निर्जीव समुदाय दबी है.... "आओ ..तुम्हारी औकात दिखाऊं ...तुम्हें तुम्हारी जात बताऊं" कर्णपट की तलछटी में बात डाल लो मेरे हर हुक्म पर अपनी गांठ बांध लो तुम्हें जीव होकर भी है जीना नहीं शहद रखा हो जो तेरे आगे बातों का दूर से बस देख ...सुन इसे पीना नहीं स्त्री हो तुम...अपनी नहीं, मेरी बनाई हदो में रहो तेरा स्वर्ग मेरे तलवे के नीचे बस पड़ी पदों में रहो सुन......ना तेरा कोई मान है न तेरा कोई सम्मान मेरे उपभोग की तू वस्तु है .....घर में पड़ी समान चल अब उठ अपनी इच्छाओं का तू गला घोंट तू स्त्री है तेरा सौभाग्य मेरे हाथों मिली हर चोट समझ लो कि - तुम्हारा अस्तित्व केवल मशीनी है काम तुम्हारा बिन थके-रुके अनवरत खटते जाना गर कहीं जो चूक गयी - तू कुलटा और कमिनी है हुँह........ जात से बेटी- ना बाप की ,न सासरे की न कोई ठौर , ना...