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Showing posts from March, 2017

#ज्ञात_है_कुछ_बातों_का_कोई_ओर_नहीं_होता

हर सवेरे के बाद शाम- सूरज ढलता हैं.... कुछ है जो भीतर ही भीतर, हिय को खलता है.... खलती है-शांत सी पथराई ऑंखें, खलती है-हृदय में दबी हुई सी गुमसुम बातें, ज्ञात है,कुछ बातों का कोई ओर नहीं होता अनगिनत बादलों से लदे, अथाह नीलगगन का कोई छोर नहीं होता इच्छाऐ हैं,जो- लहरों सी उद्वेलित होती हैं... कुछ क्षण उपरान्त, यथार्थ के सागर में - शांत लहरों सी सोती हैं.... ©प्रियंका सिंह

#बेवजह_का_समर्पण

आज फिर तुम्हारी गुमसुम आँखे बोल उठी हैं... आँसुओं की धार,रहस्य तेरे हिय का खोल बैठी हैं.. कब तक तकलीफों की कड़वी घुंट पियोगी.. कब तक तुम यूं ही एक टूक जियोगी... जरूरी तो नहीं हर परिस्थितियॉ सामान्य हो.. जरूरी नहीं कि तुम्हारा हर त्याग समाज को मान्य हो.. हृदयहीन ये समाजिक लोग तो अंधे हैं.. नारीयों को त्यागीमूर्त बनाना, इनके चिरकालीन गतिशील धंधे हैं... बेवजह का समर्पण छोड़ दो.... अपने भाग्य से जुड़े ,दुर्भाग्य की कड़ीयॉ तोड़ दो... उठो,लड़ो..ताकी परिवर्तन की आशाऐं जिन्दा हो.. जरूरी है कि... समाज भी अपनी दोहरी मानसिकता पर शर्मिंदा हो... ©प्रियंका सिंह

#मन्नतें

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#बेड़ीयॉ

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#रंग_सफेद

"सफेद"..... मेरे लिऐ- तुम सबसे अच्छे.... भड़किले,सजीले रंगो की भीड़ में- तुम सबसे सच्चे.... आप बेरंग बन,रंगो को खूब मान दिया, ताप,त्याग सा- अपने लिऐ...अपसगुणी का अपमान लिया.... मैंने माना... तुम में है,सहज-सरल प्रेम सी कांति.. तुम्हारे आलिंगन मात्र में मिले- मेरे अस्थिर मन को अद्भूत शांति...                                              प्रियंका सिंह

#_मैं_

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#मन_से_मन_की_बातें

#मन_से_मन_की_बातें किताबी बाते करना,यारों बंद करो.. पाण्डित्य प्रदर्शण के सुरों को, अब तुम मंद करों... आओ चलो.. कुछ नासमझों सी बातें कर लें... कुछ तुम मासूम मन की कह दो, कुछ हम मन सें मन की बातें सुन लें....                                    © प्रियंका सिंह

#एक_दिन_का_सम्मान_महिला_दिवस

#एक_दिन_का_सम्मान अरे ओ ...महिला मंडलि... ले ली बधाईयॉ, हो ली खुश.. जो अगर बाकी हो तो, जल्द समेट लो- "एक दिन का सम्मान" कल होते ही तेरे तोंते उड़ेंगे, तेरी इच्छाओ की पुकार सुन- लोग क्या.....  मच्छर मक्खी भी ना मुड़ेंगे चल जल्दी समेट आज झुठे दिलासाओं की दुकान.... कल फिर तेरे अस्तित्व की सच्चाई- घर के कोने में पड़ी चलती,फिरती,कभी खड़ी जैसे हो बेमोल सा कोई पुराना सामान...... ©प्रियंका सिंह

#उस_खाली_कोने_मेंं

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#लूटेरे_विज्ञापन

विज्ञापन हमें लूट रहा हैं.. चका-चौंध की ओखल में, लूभावनी मूसड़ से कूट रहा हैं.. झोंक रहीं जनता भी इसमें अपनी कमाई... ठांट-बांट से लदे बिछौने पर, बेचारों ने अपनी नींद गवांई... ©प्रियंका सिंह

#मानवीय_विडंबना

हाय! क्या विडम्बना हैं... हिंसक पशुओं की भांति, व्यक्ति-व्यक्ति को नोंच रहा... इंसानियत के गुर्दे को,इंसान ही- आधुनिक,सभ्य,सफलता की नुकिली नोंक से खरोंच रहा... विकल्पों से भरे इस- मानवीय-अमानवीय संसार में, कोई हैं जो अहंकार के ऩशे में झूम रहा.. तो कोई प्रदर्शन के पजा़मे में- हर गली,नुक्कड़,चौराहे घूम रहा... कोई सज्जन है,जो सुख-सुविधाओं के बीच विपन्न हैं.... कोई निर्धन है,जो दुख-दुविधाओं के बीच सम्पन्न हैं..... ©प्रियंका सिंह

#दृढ़ता

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#मेरे_गाढ़े_का_साथी

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