#ज्ञात_है_कुछ_बातों_का_कोई_ओर_नहीं_होता
हर सवेरे के बाद शाम- सूरज ढलता हैं.... कुछ है जो भीतर ही भीतर, हिय को खलता है.... खलती है-शांत सी पथराई ऑंखें, खलती है-हृदय में दबी हुई सी गुमसुम बातें, ज्ञात है,कुछ बातों का कोई ओर नहीं होता अनगिनत बादलों से लदे, अथाह नीलगगन का कोई छोर नहीं होता इच्छाऐ हैं,जो- लहरों सी उद्वेलित होती हैं... कुछ क्षण उपरान्त, यथार्थ के सागर में - शांत लहरों सी सोती हैं.... ©प्रियंका सिंह