#मानवीय_विडंबना

हाय! क्या विडम्बना हैं...
हिंसक पशुओं की भांति,
व्यक्ति-व्यक्ति को नोंच रहा...

इंसानियत के गुर्दे को,इंसान ही-
आधुनिक,सभ्य,सफलता की
नुकिली नोंक से खरोंच रहा...

विकल्पों से भरे इस-
मानवीय-अमानवीय संसार में,
कोई हैं जो अहंकार के ऩशे में झूम रहा..
तो कोई प्रदर्शन के पजा़मे में-
हर गली,नुक्कड़,चौराहे घूम रहा...

कोई सज्जन है,जो
सुख-सुविधाओं के बीच विपन्न हैं....
कोई निर्धन है,जो
दुख-दुविधाओं के बीच सम्पन्न हैं.....

©प्रियंका सिंह

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