कैसे होगी यह दीवाली.?
गीत
बच्चे भूखे अकुलाते हैं
घर में पसरी है बदहाली!
मन विह्वल है सोच सोच कर
कैसे होगी यह दीवाली.?
कोई महलों की रंगत कर,
कनक-कटोरी धोता है।
चाँदी की चादर में लिपटा,
ठाठ बाट से सोता है।
तन के हर इक चिथड़े को भी,
जब नोच रही है तंगहाली
मन विह्वल है सोच सोच कर
कैसे होगी यह दीवाली.?
बाज़ारों में लोग दिखे हैं
अपने-अपने रंग लिये।
कोई खरीदे मन की खुशियाँ ,
कोई बेचे आश - दीये।
उम्मीदों के बदले में जब,
हाथ न आती हो खुशहाली।
मन विह्वल है सोच सोच कर
कैसे होगी यह दीवाली.?
विश्व कुटुंब, समान धरोहर
सब जिसके सहवासी हैं।
लेकिन कुछ में निर्धनता है
आँखें प्यासी-प्यासी हैं।
घर खाली! जब आँगन खाली,
पीठ,पेट,मन, जब हो खाली।
मन विह्वल है सोच सोच कर
कैसे होगी यह दीवाली.?
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