#और_कितनी_शिकायतें_हैं_तुम्हे_मुझसे

शिकायतें....
और कितनी हैं ?
तुम्हे मुझसे शिकायतें..

अगर कुछ है तो बता दो,
कुछ बेढंगा सा जो मुझमें है
वो आज ही तुम जता दो...
रोज़ की कुढ़न का करना क्या,
रोज़ यूँ किस्तो में लड़ना क्या..
रोज़ की किचकिच,रोज़ की झिकझिक
आज गिना ही दो मेरी, रोज़ की खिटपिट
हाँ,हर बात पे जिद्द करती हूँ 
हाँ,हर बात पे खीझ पड़ती हूँ
वक्त बे-वक्त...I
हाँ,बस तुमसे ही भिड़ पड़ती हूँ

और कुछ ...देख लो,सोच लो
कुछ रह ना जाऐ
रुक जाओ,जरा संभाल लूँ खुद को
तकलीफें आँखों से मेरे बह ना जाऐं...

इक बात बताओगे?
और कितना बेरुखापन दिखाओगे,
और कितना खुद से दूर भागाओगे..
जानती थी वक्त बदलेगा 
पर इतनी जल्दी,ये उम्मीद ना थी,
एक मेरे तुम ही अपने
मैं कोई हज़ारों की मुरीद ना थी...
बचत चाहती थी लम्हो का 
हर बात के लिए
फकत कुछ परवाह लम्हे हमेशा हमेशा के साथ के लिए

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