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Showing posts from September, 2017

#शुद्घ_हिंदी_गीत_(ऋतु प्रेम आई है)

#दिनांक 8/9/17 #गीत #आधार_छंद_विजात 1222         1222 सुनो ऋतु प्रेम आई है घटा भी संग छाई है कहीं फिर कूकती कोयल कहीं फिर गूँजती पायल सुना है गीत नदियों का मिला अब मीत सदियों का हृदय में तू समाई है सुनो ऋतु प्रेम आई है खिलें हैं आज वन उपवन हुआ है देख चंचल मन दिखी ये साँझ फुलवारी खिली हर फूल की क्यारी तुझे पाऊँ दुहाई है सुनो ऋतु प्रेम आई है बड़ी ये रात है प्यारी मगन सुन रागिनी सारी कहो ये बात है कैसी लगे अनुराग के जैसी दशा अपनी दिखाई है सुनो ऋतु प्रेम आई है #प्रियंका_सिंह

#ग़ज़ल (नज़र नहीं आता)

#दिनांक- 9/9/17 #गज़ल 2122  1212   22 पल सुहाना नज़र नहीं आता ये दीवाना नज़र नहीं आता जो लगे जान तुम खफ़ा से हो तो सताना नज़र नहीं आता ये उदासी जो नागवारा है क्या मनाना नज़र नहीं आता हाल दिल का सुनो कहूँ तुमसे कुछ छिपाना नज़र नहीं आता 'प्रिय' जमाने की बात समझाए पर ठिकाना नज़र नहीं आता #प्रियंका_सिंह

#नारी_शिक्षा(ताटंक छंद)

#दिनांक - १३-०९-२०१७ #ताटंक_छंद 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 हर क्षेत्र में सबल है नारी, सबको बात बतानी है। सिर आश्रय पाकर शिक्षा का, अब पहचान बनानी है। अबकी जो कदम बढाया है, इसे न हम रुकने देंगे। सफलता शीश चमकेगी अब, मान नहीं घटने देंगे। आज हर दिन संख्या घट रही, हमें बेटी बचाना है। जग में अपना नाम करें वो, उनको खूब पढ़ाना है। मानसिक जड़ता को तोड़ कर, सुन जो खूब पढ़ेगी तू। इस पुरुषाधिन समाज मे भी, बिटिया खूब बढ़ेगी तू। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 #प्रियंका_सिंह

#कविता_हिंदी_दशा_दिशा

#दिनांक- 14/9/17 #हिंदी_दशा_दिशा अपनी 'राजभाषा' हिंदी है कई लोगो को ये ज्ञान नहीं हाय मातृभाषा हिंदी को निज लोगो में ही मान नहीं व्यवहारिक भाषा हिंदी से सब समझे निज सम्मान नहीं इससे अति क्या दुर्गति होगी हिंद में हिंदी अभिमान नहीं आंग्ल भाषा की गरिमा को यहाँ हर लोग बचाये रखते है बस निज भाषा के प्रयोग में मन और मुख दबाये रखते हैं मन प्रफुल्लित होता आज ये मन अति हर्षित होता आज यदि दिन हिंदी उत्सव होता हिंदी वर्ग प्रधान न होती न ही प्रयोग औसत होता साहित्य रचयिता की कर्मठता व्यर्थ दिखाई पड़ती है जब अपनो के ही मध्य ये हिंदी घुट घुट नित नित मरती है चलो आज हम इक दीप जलाये हिंदी की उन्नति स्वर गीत गाये सम्मान हम ही से मिलना है जब आओ सब मिलकर मान दिलाये #प्रियंका_सिंह

#ग़ज़ल_हिंदी_शौर्य

#दिनांक- 14/9/17 #विषय  #हिंदी                 #ग़ज़ल 2122       2122        2122         212 ये धरा   जननी यही है   भारती ये    शान  है हिंद  हिंदी  वंदना सुन   आरती ये     मान  है वीर गाथा  से सजी   साहित्य यह   जान  लो रूप शब्दों का   नहीं ये   देश की  पहचान है है यही तुलसी की' वाणी है निराला ज्ञान स्वर वर्ग की बोली नहीं ये    सर्व का  अभिमान है युग युगों से चल रही   संघर्ष ये  अस्तित्व की आज भी 'कई जान इसकी प्राण से अंजान है खेलते कुछ लोग  भाषा नाम पर   क्यों पैतरे ध्यान हिंदी ही सदा मन - भाव का सम्मान है #प्रियंका_सिंह