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Showing posts from February, 2018

तुम उदास करते हो

कवि तुम वाकई उदास करते हो भूल जाते हो - बतौर एक कवि तुम अकेले नहीं रह जाते तुम्हारा होना न होना एक मात्र तुम तय नहीं कर सकते तुम्हारी लिखी प्रत्येक पंक्तियों के साथ हो जाती है संग्लन कइयों की भावनाएं ये बात दीगर है की एक अकेले अकेलेपन में ही व्यक्ति चुनाव करता है मित्र सदृश कुछ सफेद काग़जी पुलिंदो का और करता चला जाता है आशाओं, अभिलाषाओं , और भावनाओं का स्थानांतरण माना आ सकते हैं तुम्हारे जीवन में भी कई ज्वार और भटाएँ कभी आँखों के पथरा जाने कभी उनके कोरो के भींग जाने तक हो सकते हो उदास तुम भी किन्तु इन सब से कुछ नए के आदि पाठकों को क्या? जाओ   किन्तु जाने से पूर्व तुम्हे यह ज्ञात हो कि कर दिये जाओगे घोषित पूर्व के कुछेक शब्दकारों की भाँति तुम भी  पलायनवादी तब उनकी मनोदशा का क्या ? जिनका जुड़ाव है तुमसे, तुम्हारे होने मात्र से - एक लंबी गहरी उदासी के बाद मुरझाने के कारण सियाह पड़े चेहरे पर खिलने वाली मीठी मुस्कान की तरह प्रियंका

सरस्वती वंदना गीत

#विधा:- गीत (सरस्वती वंदना) #छंद :- तांतक #दिनांक:- 19-02-2018 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵 स्वर्णिम भूमि - श्वेत सी आभा, हर्षित रूप निहारे है। ज्ञान गुणों की देवी तुझको, बाल अबोध पुकारे है। शीश मुकुट सिंदूरी सा मुख, वन्द्या हंस विराजे है। मन आनंदित हो जाए जब,मधुरिम वीणा बाजे है। कर दे द्वेष नष्ट माँ मन से, मेरा हृदय विचारे है। ज्ञान गुणों की देवी तुझको, बाल अबोध पुकारे है। पाप मुक्त हो जाए चेतन, मातु मुझे वर ऐसा दे। दिव्य ज्योति फैले इस जग में,चमत्कार कर ऐसा दे। तू वेद सखी ऐसी है जो, भवसागर से तारे है। ज्ञान गुणों की देवी तुझको, बाल अबोध पुकारे है। जोड़ करों को करती वंदन, बस आशीष मुझे दे तू। जीवन में गर आये विपदा, सारी विपदा हर ले तू। बीच भँवर में फँस जाऊँ माँ, लाती मुझे किनारे है। ज्ञान गुणों की देवी तुझको, बाल अबोध पुकारे है। 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵 स्वरचित प्रियंका सिंह पुणे (महाराष्ट्र)

#तिरस्कार

सच भूल गई थी तुम्हे ... तुम्हारे नाम को मैं  सखी ठुकराया था तुमने मेरे प्रस्ताव को एक नहीं कई बार भूल गई थी हर खीज़ को - जो अनायास ही जन्मी थी तुमसे मिली रूखी सी प्रतिक्रिया पर रुको ...याद हो आया हाँ  हताशा की वो मौजूदगी जो मुरझा गई थी मेरे मन को जानती तब भी न थी तुम्हे जब सुझाया गया था प्यारा सा नाम 'तुम्हारा' कुछ मेरे चिंतको और तुम्हारे प्रसंशको द्वारा .. जब मैंने लड़खड़ाते हुऐ चलना जाना दूर खड़े कुछ लोग जिन्होंने इशारों से - इंगित किया तुम्हारी ओर  ... देखा था फिर मैंने तुम्हारे चेहरे का बायां सिरा खड़ी थी मैं जिस कोने से लगाई थी दौड़ तुम्हारी ओर - "थाम सकूँ तुम्हारे हाथ को फिर सीख सकूँ मैं चलना तुम्हारे सानिध्य में " अरे ...छू ही तो पाई थी तुम्हारे बाएं हाथ की छोटी उंगली का वो छोटा सा नाखून की - खींच लिया तुमने अपना पूरा हाथ आज कई दिनों बाद फिर तुम अनायास ही आ गई सामने ... सच कौंध गया बिता हर एक पल फर्क सिर्फ इतना था उस वक़्त सिर्फ तुम्हें देख ही तो पाई थी किसी और कि आँखों से पर आज सुना है तुम्हें आश भरे व्यथित मन से सुन...

#जब_कभी_विच्छिन्न_होते_हैं_स्वप्न

टूट जाती है अनगिनत चींजें बोझिल होकर भीतर ही भीतर निकलती है व्यथित सी आहें जब कभी विच्छिन्न होते हैं स्वप्न जिन्हें मृदु भावों से लपेट,सहेज सहलाती हैं उम्मीदें हर बार यथार्थमयी खुरदुरी हथेली से टूट जाने की पीड़ा से तिलमिला कर ढहती है अंतर्मन की सजीली मीनारें एक एक कर नहीं ,अपितु एक साथ तब होते है कोलाहल से बहुत दूर विलीन होने की मौन साधना में लीन अंतःकरण की मीनारों के - धराशायी हो चुकें प्रत्येक मलबे उठती है धूल भी तीव्रतम आवेग में कणों में क्रोध की तपिश लिए तिलमिलाहट की व्याकुलता में - करते हैं विचरण बौराये हुए विषाक्त कीट की भाँति टूटी आशाओं की कंद्राओं से - निकलती हैं भयावह सी चीखें चाहती हैं चोटिल करना - तैरते विषाक्त कणों के मध्य आने वाले प्रत्येक जीव को अंतश में त्याग उर के शेष समस्त भाव होते है सम्मिलित शून्य होने की प्रक्रिया में और आ गिरते है शून्य की धरा पर अंततः अपनी ही वेदनाओं की- ऊहापोह से परास्त होकर #प्रियंका_सिंह