#तिरस्कार


सच भूल गई थी तुम्हे ...
तुम्हारे नाम को मैं  सखी

ठुकराया था तुमने मेरे प्रस्ताव को
एक नहीं कई बार

भूल गई थी हर खीज़ को -
जो अनायास ही जन्मी थी
तुमसे मिली रूखी सी प्रतिक्रिया पर

रुको ...याद हो आया
हाँ  हताशा की वो मौजूदगी
जो मुरझा गई थी मेरे मन को

जानती तब भी न थी तुम्हे
जब सुझाया गया था
प्यारा सा नाम 'तुम्हारा'

कुछ मेरे चिंतको और तुम्हारे
प्रसंशको द्वारा ..
जब मैंने लड़खड़ाते हुऐ
चलना जाना

दूर खड़े कुछ लोग
जिन्होंने इशारों से -
इंगित किया तुम्हारी ओर  ...
देखा था फिर मैंने
तुम्हारे चेहरे का बायां सिरा
खड़ी थी मैं जिस कोने से
लगाई थी दौड़ तुम्हारी ओर -
"थाम सकूँ तुम्हारे हाथ को
फिर सीख सकूँ मैं चलना
तुम्हारे सानिध्य में "

अरे ...छू ही तो पाई थी
तुम्हारे बाएं हाथ की छोटी उंगली का
वो छोटा सा नाखून की -
खींच लिया तुमने
अपना पूरा हाथ

आज कई दिनों बाद फिर तुम
अनायास ही आ गई सामने ...
सच कौंध गया बिता हर एक पल
फर्क सिर्फ इतना था
उस वक़्त सिर्फ
तुम्हें देख ही तो पाई थी
किसी और कि आँखों से
पर आज सुना है तुम्हें
आश भरे व्यथित मन से
सुनो न सखी.....
फिर कचोट गया वो मन
जो हताश व क्षुब्ध सा हुआ था

फर्क फिर सिर्फ इतना कि
तुम्हारे जीवन से संलग्न
परिस्थितियों के काव्य में वर्णित
किसी टूटते तारों की धूल
जैसे गड़ गई आँखों में
और द्रवित हो उठा एक और मन
तुम्हारी डबडबाती आँखों और
लड़खड़ाते बोल के साथ ......

भूल गई फिर मैं सब कुछ .....
और रोक न पाई भावुक होते
अपने मन को - एक बार फिर
तुम्हारा हाथ थामने से ....
सिर्फ और सिर्फ अपने लिए


#प्रियंका


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