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मुक्तक संघर्ष

#मुक्तक -   #संघर्ष 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻किसी झुलसे समय के पृष्ठ की कोई बयानी है। निरा संघर्ष में माँजी हुई सबकी कहानी है। न बच पाई सुकोमल प्रीति तक इसकी सियाही से, हुई क्या दुर्दशा मीरा की ये किसने न जानी है?🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻प्रियंका सिंहPc-google

मुक्तक संघर्ष

#मुक्तक -   #संघर्ष 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻किसी झुलसे समय के पृष्ठ की कोई बयानी है। निरा संघर्ष में माँजी हुई सबकी कहानी है। न बच पाई सुकोमल प्रीति तक इसकी सियाही से, हुई क्या दुर्दशा मीरा की ये किसने न जानी है?🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻प्रियंका सिंहPc-google

मोह

#मोह  कुछ अव्यक्त, अकथित भावनाएँ  जो पैठती चली जा रहीं लगातार भीतर और भीतर जैसे समुद्र के बीचो बीच गर्त में धकेल दी हो किसी ने  कोई भारी- सी ठोस वस्तु अपना भारीपन लिए धँसता चला जा रहा समुद्र के सीने में।  उम्मीदों का लबादा ओढ़े इच्छाएँ  धीरे - धीरे हताश हो रही, धुआँ होती जा रही  किसी होम से निकलने वाले सुगंधित धुएँ के बजाय शवदाह में चटकती हड्डियों से निकलते धूम्र की तरह  विषाक्त, अशुभ, अमंगल - सा।  हवाओं की शक्ल में बहती हुई उम्मीदें  खिड़कियों - दरवाजों, बियाबान बीहड़ों से होती हुई अपनी वापसी की यात्रा में झुँझलाती हुई  लू के थपेडों - सी आ लगी हैं पीठ, माथे, सीने से आत्मा ज्वर से पीड़ित है सुस्त, दुर्बल, निष्क्रिय  मरणासन्न पर पड़े किसी वृद्ध की भाँति जिसके घटते श्वास के साथ  छूटता चला जा रहा संसार छूटता जा रहा मोह। © प्रियंका सिंह

प्रणय के भाव (मुक्तक)

प्रणय के भाव; तिसपर वेदने ! उर की व्यथा भी है समय का दंश सहकर देह ने ख़ुद को मथा भी है तुम्हारी आस का दीपक हमें झुलसा रहा लेकिन, हृदय के पृष्ठ पर अंकित उभय की रति कथा भी है

घनाक्षरी

#छंद - (#मरहरण_घनाक्षरी) समता की भावना से सजी इस दुनिया में जहाँ देखो वहाँ बस कपट की काली है । क्रोध, क्लेश और मृषा रूपी मैला उपवन जहाँ छल द्वेष स्यात् बने बैठा माली है । खो रही संवेदना से पल्लवित पादपों की, होती हतप्रभ कली, सूख रही डाली है । जिन गुणों हेतु मनु पशु से पृथक रहा आज उन्हें हार पशु-वृत्ति अपना ली है । ©प्रियंका सिंह #छवि - #गूगल

मुक्तक( राम आए हैं

सुवासित हो रहा कण- कण प्रभो श्री राम आये हैं।  धरा भी हो रही पावन प्रभो श्री राम आये हैं।  कि हर्षित हो रहा है जग मिटेगी सृष्टि की पीड़ा हुआ री ! धन्य जन - जीवन प्रभो श्री राम आये हैं।   © प्रियंका सिंह #रामनवमी_की_शुभकामनाएँ 🌸🙏 Pc - googl

भारत की पावन धृति पर रंगों का इतिहास रहा(गीत)

त्यौहारों के किसलय में कुसुमित मधुरिम उल्लास रहा भारत की पावन धरती पर रंगों का इतिहास रहा। यहाँ अवध के हर बालक ने मर्यादित रहना जाना  यहाँ प्रेम के गोकुल रँग से रँगा हुआ है बरसाना औ जीवन का रंग गुलाबी मतलब संधि - समास रहा भारत की पावन धरती पर रंगों........ केसरिया रँग त्याग लिए है, श्वेत, शांति की लय ध्याये रंग, हरा समृद्धि बताए और सुमति को हर्षाये रंग, कभी है रामराज्य-सा कभी निरा वनवास रहा भारत की पावन धरती पर रंगों........ आशाओं का रंग सुनहला, विश्वासों का धानी है भक्ति, रंग निर्मल गंगाजल, काव्य रंग रसखानी है नीला रंग जो नीलकंठ का लिए हुए कैलाश रहा भारत की पावन धरती पर रंगों........

जहाँ हृदय मे प्रेम (मुक्तक)

जहाँ हृदय में प्रेम अधर पर हो गुड़ -सी मीठी बोली  उत्सव नेह दया करुणा उस आँगन की है रंगोली  जिसकी लय व अलय में घुलती धैर्य सरीखी मृदु लाली, सतरंगी सपनों के सँग में प्राण वहाँ खेले होली

होली (घनाक्षरी)

घनाक्षरी रंग भरी पिचकारी अबीर गुलाल वारी मथुरा के अंगना में बही फगुनाई है। राधा के जो साँवरे हैं हुए आज बावरे हैं रंग अंग डारते जो देती वो दुहाई है। गोपियों के चित डोले कान्हा श्याम रंग घोले गोकुल की गलियों में मादकता छाई है। भीगा तन भीगा मन  भीगा वृंद उपवन भीगती हवा भी यहाँ आज होली आई है।