होली (घनाक्षरी)

घनाक्षरी

रंग भरी पिचकारी
अबीर गुलाल वारी
मथुरा के अंगना में
बही फगुनाई है।

राधा के जो साँवरे हैं
हुए आज बावरे हैं
रंग अंग डारते जो
देती वो दुहाई है।

गोपियों के चित डोले
कान्हा श्याम रंग घोले
गोकुल की गलियों में
मादकता छाई है।

भीगा तन भीगा मन 
भीगा वृंद उपवन
भीगती हवा भी यहाँ
आज होली आई है।

Comments

Popular posts from this blog

दोहा(गणेश वंदना)

#मोबाइल

#और_कितनी_शिकायतें_हैं_तुम्हे_मुझसे