गाँव

                            #गीत

                #आधार_छंद_तांतक

देश गाँव की मिट्टी सोंधी, मोहत मन हरियाली है
खेतों के सब मेढ़ सजीले, धरती रूप निराली है

सनन-सनन पुरवइयाँ चलती, मधुरिम गीत सुनाती हैं
सरसो के खेतों की कलियाँ ,रह-रह कर मुस्काती हैं
सारी फसलें झूमें ऐसे,ज्यों कोई मतवाली है
खेतों के सब मेढ़ सजीले, धरती रूप निराली है

याद कभी कर अपना बचपन,वो बीतें दिन कैसे थें
काका के पेड़ों के फल को ,घात लगाए बैठे थें
कच्ची कैरी के खट्टे में , बथुए सी खुशहाली है
खेतों के सब मेढ़ सजीले, धरती रूप निराली है

वो गाँव की जेठ दोपहरी ,झिलमिल पोखर रातों में
पगडंडी पर सरपट दौड़े ,पहिया थामे हाथों में
कई घरों के खप्पर फूटें, क्यों ऐसी बदहाली है
खेतों के सब मेढ़ सजीले,धरती रूप निराली है

जीवन के कुछ सार यहाँ हैं,मूल्य कई सिखलाती है
धूप-छाँव की कितनी रस्में ,रंग यही दिखलाती है
सुख-दुख के निज बागीचों का ,मानव मन ही माली है
खेतों के सब मेढ़ सजीले, धरती रूप निराली है

#प्रियंका_सिंह

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