Posts

Showing posts from April, 2017

#कुछ_ना_होगा_इस_देश_का

#कुछ_ना_होगा_इस_देश_का चूहे बिल्ली की दौड़ लगी है उफ़ इस राजनीती में , देखो कैसी होड़ मची है कहीं किसानों की पोल खुल रही कहीं जवानों के - जीवन का कोई मोल ही नहीं.... चल रहे है सभी भ्रस्टाचार की लकुटिया टेक वो बात और है कि सारे नेता सारी जिम्मेदारियों को, बस रहे एक दूसरेे पर फेंक.. कुछ ना होगा इस देश का जाने कब असलियत बाहर आएगी देश के शुभचिंतको के नकली वेश का... ©प्रियंका सिंह

#कैसे_करूँ_तुम्हारी_शहादत_को_सलाम

तुम्हारी शहादत की झांकियों के बढ़ते काफिलों के पीछे छूट गई इक नन्ही सी किलकारी... हो गई खाली .. तुम्हारे कपड़ो से भरी पड़ी- हम दोनों की अलमारी.... अब ना आएंगी , तुम्हारे नाम की कोई चिट्टी.. सारे सपने ख़ाक हो गए बस पास बची .. तुम्हारे अर्थी की आखिरीे स्पर्श वाली घर आंगन की मिट्टी... छुट्टी की मंजूर अर्जियों के साथ अब कोई ना घर को आएगा प्यार-तकरार भरी मुस्कान से अब कोई ना मन बहलाएगा.. अब कौन लाएगा .. अपनी बिटिया के लिए खिलौने अब कौन बतियायेगा... बैठ अम्मा के सिरहाने सुनी हो गई ... हाय मेरी कलाई तुम्हे अंतिम विदाई देते... हाय सबकी आँखें पथराई मैं मानती हूं .... तुम शहीद होकर ,अमर हुए.... पर सच्चाई तो ये भी है ना तुम हमारे पास,हमारे बीच नहीं रहे... ©प्रियंका सिंह

#बावड़ी_अँखियाँ_टकटकी_लगाऐ

 #बावड़ी_अँखियाँ_टकटकी_लगाऐ हर बार उस चौखट से मायुँसी लिए साथ लौट आती हूँ... एक तेरे नाम की ख़बर हैं कि- आती ही नहीं.... तेरे आने की खबर कागा मुझे बताएं , हर बार ये जिम्मेदारी उसे सौप आती हूँ... फिर भी तेरे आश में टकटकी लगाए , ये बावड़ी अँखियाँ है कि निंदिया लोक में जाती ही नहीं..... ©प्रियंका सिंह

#विहग_वंदना

प्रातः की मनोहारी शीतल बेला में देखो खिल उठा हैं ये सूरज अदना... कहीं पुष्पगंधों से मदमस्त हवाएं तो कहीं गुंजित होती विहग वंदना... ©प्रियंका सिंह

#मनःस्थिति

ना जाने कौन सी स्थिति में हैं मेरी मनःस्थिति.... हर क्षण एक अजीब सी उकलाहट है, आप में ही अज्ञात सी बौकलाहट है.. जाने क्यों..? हर बार उस अंजान से मोड़ पर खुद को खड़ा पाती हूँ जहाँ से बस विषाद की गठरी का बोझ हर बार अपने कंधे पर ढोये लाती हूँ  उस अज्ञात वन का वो छोर.. जहाँ से मुझे आगे बढ़ना है अवचेतन मन के रेतीले टीले की आखिरी ऊँचाई तक मुझे बेतहाशा चढ़ना हैं कुछ शेष बची हुई आशाएं है आशाओं के अवशेष रूप में कुछ इच्छाएं है जानती हूं इतना की - इन इच्छाओं की पूर्ति मार्ग पर , आगे असंख्य सी बाधाएं है.... कभी परिस्थितियों के विपरीत, भीतर ज़ोश- आक्रोश पाती हूँ कभी जिम्मेदारियों से दुर्बल, निर्जीव उम्मीदों के गर्त में - खुद को समाएं जाती हूँ समझ नहीं पाती आखिर क्या है... मेरे जीवन की अंतिम परिणति सच... ना जाने कौन सी स्थिति में हैं मेरी मन की मनःस्थिति....

#बंद_भी_करो_ये_पत्थरों_की_बाजी

#बंद_भी_करो_ये_पत्थरों_की_बाजी 'अपने ही अपनों को तोड़ेंगे' ये बातें हज़म नही होती.. हम भी उखाड़ सकते हैं , तुम्हारी जंघाओं और भुजाओं को जो अगर हमे भारत माँ की कसम नही होती.. बंद भी करो ये पत्थरों की बाजी ये वेतन तुम्हारे नाम भी हैं साथी.. अरे हमे तो साथ मिलकर - दुश्मनो से लोहा लेना हैं नाकि अपने ही सैन्यदल को - रणभूमि में धोखा देना हैं चंद पैसो की बात है प्यारे, इस काले से धन का क्या करोगे? अपने देश से विद्रोह का शिरोनाम , लेकर ही क्या तुम मरोगे? अरे..... दुश्मनो की गोलियां फिर भी हमे बर्दाश्त है पर दुश्मनो की शक्लो में हम तुम्हे अपने आगे पाएंगे इस सोंच से चोटिल होते हमारे अपने ही जज़्बात है यारो.... हम तुम्हारी ही सुरक्षा में तत्पर सेना है एक तुम्हारी सलामती के लिए ही तो  हमें आखिरी सांस तक जीना हैं...... ©प्रियंका सिंह

#और_कितनी_शिकायतें_हैं_तुम्हे_मुझसे

शिकायतें.... और कितनी हैं ? तुम्हे मुझसे शिकायतें.. अगर कुछ है तो बता दो, कुछ बेढंगा सा जो मुझमें है वो आज ही तुम जता दो... रोज़ की कुढ़न का करना क्या, रोज़ यूँ किस्तो में लड़ना क्या.. रोज़ की किचकिच,रोज़ की झिकझिक आज गिना ही दो मेरी, रोज़ की खिटपिट हाँ,हर बात पे जिद्द करती हूँ  हाँ,हर बात पे खीझ पड़ती हूँ वक्त बे-वक्त...I हाँ,बस तुमसे ही भिड़ पड़ती हूँ और कुछ ...देख लो,सोच लो कुछ रह ना जाऐ रुक जाओ,जरा संभाल लूँ खुद को तकलीफें आँखों से मेरे बह ना जाऐं... इक बात बताओगे? और कितना बेरुखापन दिखाओगे, और कितना खुद से दूर भागाओगे.. जानती थी वक्त बदलेगा  पर इतनी जल्दी,ये उम्मीद ना थी, एक मेरे तुम ही अपने मैं कोई हज़ारों की मुरीद ना थी... बचत चाहती थी लम्हो का  हर बात के लिए फकत कुछ परवाह लम्हे हमेशा हमेशा के साथ के लिए

#तुम_किसी _भीड़_का_हिस्सा_नहीं

तुम ख़ास हो, किसी भीड़ का हिस्सा नहीं... अपने आप में एक पूरी किताब हो, किसी अधूरी सी कहानी का, कोई अधूरा सा किस्सा नहीं.. ©प्रियंका सिंह

#मोह_की_लत_में_व्याकुल_लम्हें

तुम्हे मोहलत चाहिए? तो ले लो .... पर इतनी भी मत लेना क़ि तुम्हारे 'मोह की लत' में व्याकुल लम्हो को-  तुम खो दो.....

#भू-तल_की_सियाह_गर्तों_में

तुमसे दूर कहाँ मैं जाउंगी । वादा किया है ... ता-उम्र साथ मैं निभाऊंगी ।। तुम भी सुन लो, मुझसे बच न पाओगे । भू-तल की सियाह गर्तों में भी, तुम मुझे.....  अपने साथ ही पाओगे ।।                    ©प्रियंका सिंह

#ब्लैक_एंड_व्हाइट_जिंदगी

हजारों रंगीन झमेलों के बीच... "ब्लैक एंड व्हाइट"  जिंदगी ज्यादा अच्छी हैं.... ना कोइ रंग,ना कोई संग ना कोई जिद्द , ना किसी से उम्मीद बस आपने आप में- "खुद से दोस्ती " ज्यादा सच्ची हैं... ©प्रियंका सिंह

#अमिया_की_डाली...

गर्माहट भरी हवाओं में, झूमती वो अमिया की डाली... पत्तियों की सरसराहट हो या, डालियों की चरमराहट, लगे जैसे साथ मिल सारे- बजा रहे हो ताली..... इठलाती,बलखाती सौंधी-सी खुशबू पीली पीली मंजरी की.. जैसे खरी हो कोई बाला- पीली चुनड़ी ओढ़े सुन्दरी सी... उफ्फ ये चटपटा खट्टापन नन्ही नन्ही कैरी की..... याद आया बचपन, पेड़ों से टपकते आमों के लिये, आंधी-बारिशों के बीच - कभी मैं भी बागो में दौड़ी थी... ©प्रियंका सिंह

#चटकती_पीली_सरसों_के_महीन_दाने,

चूल्हे की गर्म आंच पर जलती तप्ती कड़ाही, तप्ती हूँ मैं भी प्रत्येक क्षण- जब भी स्मरण हो आती हैं जलती चुभती तुम्हारी हर एक बातें... चटकती जैसे गर्म तेल में पीली सरसों के महीन दाने, चटके हैं वैसे मेरे हरेक सपनें भी- जिनकी आवाज़ को हर बार दबा जातें तुम्हारी कड़वी बातों के गमगीन ताने... तीखी बातों की हर छौंक के साथ वेदनाओ की तेज दौंक उठती हैं भवनाओं की तेज़ लहरों की ठेस से उम्मीदों से बनी नाओ चूर चूर हो टूटती हैं... ©प्रियंका सिंह

#ताना-कशी

हाय....... तुझ पर तो मैं वारी जाऊं सखी, दोनों ही गजब निराले- "तुम और तुम्हारी ताना-कशी".... ©प्रियंका 

#कुछ_नमक_बनते_हलाली_के_नाम

Image