#मनःस्थिति

ना जाने कौन सी स्थिति में हैं
मेरी मनःस्थिति....
हर क्षण एक अजीब सी उकलाहट है,
आप में ही अज्ञात सी बौकलाहट है..
जाने क्यों..?
हर बार उस अंजान से मोड़ पर
खुद को खड़ा पाती हूँ
जहाँ से बस विषाद की गठरी का बोझ
हर बार अपने कंधे पर ढोये लाती हूँ
 उस अज्ञात वन का वो छोर..
जहाँ से मुझे आगे बढ़ना है
अवचेतन मन के रेतीले टीले की
आखिरी ऊँचाई तक मुझे बेतहाशा चढ़ना हैं
कुछ शेष बची हुई आशाएं है
आशाओं के अवशेष रूप में कुछ इच्छाएं है
जानती हूं इतना की -
इन इच्छाओं की पूर्ति मार्ग पर ,
आगे असंख्य सी बाधाएं है....
कभी परिस्थितियों के विपरीत,
भीतर ज़ोश- आक्रोश पाती हूँ
कभी जिम्मेदारियों से दुर्बल,
निर्जीव उम्मीदों के गर्त में -
खुद को समाएं जाती हूँ
समझ नहीं पाती आखिर क्या है...
मेरे जीवन की अंतिम परिणति
सच...
ना जाने कौन सी स्थिति में हैं
मेरी मन की मनःस्थिति....

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