#हम_भी_बच्चे_बन_जाए

मंद मंद बयार में झूमती कैसे,
देखो ये अमिया की डाली...
उछलूँ, कूदूं सेंध लगाऊं
पर हर बार हाथ रह जातें खाली
दुरी इतनी के बस
देख देख मन ललचाये..
इन डालियों की भी खूब शैतानी
तनिक एक आम भी ना टपकाए..
मन में ही खुश हो लेती हूं सोच-
पके आमों की रस भरी थाली..
सचमुच फलों के इस राजा की
है बात ही कुछ निराली..
जी में आता है -
ताऊ के बगीचे के आम चुरा कर
सारे सरपट दौड़ लगाये....
वयस्कता की चादर छोड़
फिर से बच्चों की तरह ,
हम भी बच्चे बन जाएं....

©प्रियंका सिंह
फोटो: साभार गूगल

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