#खिलौनें_वाली_बूढ़ी_काकी

#खिलौनें_वाली_बूढ़ी_काकी

कौन जाने,और कितना बल शेष है ?
बूढ़ी हड्डियों का ढांचा है या
बस बूढ़ापे का कोई छद्मवेश है...

कौन जाने,कहाँ से संजोया है-
इतनी आत्मशक्ति...
जीवन के इस अंतिम चरण में,
ओ..खिलौने वाली बूढ़ी काकी
तुम्हारी ये बूढ़ी हड्डियां-
क्या नहीं थकती?...

कभी सोचती हूँ..
होगी तुम्हारी कोई मज़बूरी
शायद इसीलिए चैन और आराम से
तुम्हारी इतनी है दुरी ....

बताओ जरा...कहाँ से लाती हो तुम
इतनी ऊर्जा?..
क्या घर का भार उठाने वाला,
कोई नहीं है दूजा?

"ओ रे बोटियां...
ऊपरवाले ने ही सुनी कर दी
मेरी पूरी बगीया....
बस मैं ही हूँ मेरी, और कोई नहीं,
जिससे कर सकूँ मन की दो बतिया..
मान ले तो ये खिलौने बेचना ही मेरी जीविका है
मान ले तो ये खिलौने बेज़ान ही मेरी सखियाँ है.."

©प्रियंका सिंह

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