सावन


☔☔☔☔☔☔☔☔☔☔☔

१ - श्रृंगार

रिम झिम मेघ छाय घटा  घनघोर रे
मन भयो बावरा   चित भयो चोर रे
सावन मन बन घूमें    पपीहा सरस
हिय करें देख कैसेे     नचन जोर रे

२ - विरह

पिय दरस को  दिन कई गए    बीत रे
भाये  नहीं  कछु     कैसी  ये  रीत  रे
अब कहूँ का रचत नाहि हिय को सुनो
सावन  घन  वन  बदरा     शुभे गीत रे

☔☔☔☔☔☔☔☔☔☔☔☔☔☔☔

Comments

Popular posts from this blog

दोहा(गणेश वंदना)

#मोबाइल

#और_कितनी_शिकायतें_हैं_तुम्हे_मुझसे