गीता का जब पाठ करें हम, अधरों पर कुरआन रहे।
गंगा-यमुना के प्रणय मिलन, पर सबको अभिमान रहे।
गीता का जब पाठ करें हम, अधरों पर कुरआन रहे।
जब हैं राम-रहीम एक तो, मजहब पर फिर क्यों लड़ना?
तीन रंग से हुआ 'तिरंगा' , रंग भेद में क्या पड़ना.?
पीरों की दरगाहों पर अब, पीताम्बर का मान रहे।
गीता का जब पाठ करें हम, अधरों पर कुरआन रहे।
सुरमें,काजल की स्याही से ,मैत्री का पैगाम लिखें।
अशफ़ाक़-चंद्र के बलिदानों ,की गाथाएँ हम आम लिखें।
माटी की गरिमा की ख़ातिर, तत्पर निज ईमान रहे।
गीता का जब पाठ करें हम, अधरों पर कुरआन रहे।
इसी भूमि से भगत हुए हैं, अब्दुल और कलाम हुए।
खुसरो,मीर,कबीर हुए हैं, तुलसी,दिनकर,राम हुए।
ऐसे युग रत्नों का उर में, सदा बना सम्मान रहे।
गीता का जब पाठ करें हम, अधरों पर कुरआन रहे।
मजहब की मीठी बोली को,निज वाणी में ढाल सकें।
धर्माडम्बर की विपदा को ,सद्भावों से टाल सकें।
प्रेम-प्रेम बस प्रेम करो सब, जब तक तन में प्राण रहे।
गीता का जब पाठ करें हम, अधरों पर कुरआन रहे।
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