#यादों_की_रेलगाड़ी



यादों की इस रेलगाड़ी में,
डिब्बे सारे सपने हैं
ऐसे सपने जिनके मूल केंद्र में,
मेरे सारे अपने हैं.........

जो रुंठती मैं कभी बात बात पर ,
हर बार ठग - मानतीं वो,
खाने का हर एक निवाला-
अपने हाथों - खिलातीं वो......

माँ की बोली, माँ का दिलाशा
अब याद जो आए,मन होय रुआंसा...

बाबा की सख़्ती,
भाई की मस्ती......
लड़ाई, झगड़ों संग- मुँह फुलाना,
उन अठखेलियों संग-ढेरों बहाना....

अब लगता है वाकई- मैं बड़ी हो गई
माँ के पद पर आज- मैं भी खड़ी हो गई...
कसमें-वादें ,रिश्तें-नाते
जिम्मेदारियों का जैसे मिला खज़ाना......

अब नन्ही सी मुझमे- मुस्कान नहीं खिलती
अब अल्हड़ सी मेरी- पहचान नहीं मिलती
बाबा की टोक- माँ की गोद- भाई का सताना,
सच पूछों तो सब कुछ -लगे बीता जमाना...

मेरी पूँजी-खुशियों की कुंजी -
मेरे सारे अपने है,
यादों की इस रेलगाड़ी में,
डिब्बे सारे सपने हैं.........

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

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