सांझ की मुंडेर पर बैठा अपने साज -ओ- सामान को समेटते हुए अस्त होने को तैयार सूर्य को संकुचित आँखों से निहारा था एकटक निहारने का क्रम द्विपक्षीय हो ये अनिवार्य नहीं न ही किसी ...
वास्तव में नहीं होता कोई भी स्थान सम्पूर्ण रिक्त अपनी सारी शक्ति से भींच ली गई मुट्ठी के मध्य भी शेष रह जाता है सूक्ष्म से भी सूक्ष्म रूप में खाली एक भाग जिसे उसी समय भर रही ...
समय मिले तो.. दौड़ते हुए जीवन से निकाल लूँ एक क्षण निद्रा की मधु सानिध्य में सुस्ताने को कभी गंभीर, कभी बचकानी सरीखे की बातें खुद ही खुद से बतियाने को समय मिले तो... देख लूँ निथा...
#मुक्तक 1222 1222 1222 1222 कड़कती धूप में घिरता हुआ बादल समझ लेना कभी अपनी सजीली आँख का काजल समझ लेना मैं' तुझसे दूर होकर भी सदा ही पास हूँ तेरे तू अपने अक्स से ल...
#मुक्तक 1222 1222 1222 1222 बयाँ होने लगी लब से दबी जो बात दिल में है सभी बीतें समय की सच अभी सौगात दिल में है समय आया यहाँ पर अब नया इतिहास लिखने का- ग...
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 गुरु को प्रणाम मेरा विधा का न ज्ञान मुझे न्याय कर न पाऊँ तो मुझे सिखलाइये 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 लड़खड़ाती ...
भ्रम कई बार अनायास ही उपज जाता है मन के उजाड़ पड़े बागीचों में यूँ ही कई बार घिर आता है मन के सबसे पसंदीदा हल्के काले रंग के बदलों की शक्ल में देने लगता है मीठी सी गर्माहट तेज बह...
#मुक्तक 1222 1222 1222 1222 कड़कती धूप में घिरता हुआ बादल समझ लेना कभी अपनी सजीली आँख का काजल समझ लेना मैं' तुझसे दूर होकर भी सदा ही पास हूँ तेरे तू अपने अक्स से ल...
#दिन- शनिवार 16/09/2017 #आधार - छंद वाचिक राधा (मापनीयुक्त) #मापनी – 2122 2122 2122 2 अथवा - गालगागा गालगागा गालगागा गा #समांत - आते <> #पदांत – क्यों [ गीतिका ] धर्म के ही नाम पर तुम घर चलाते क्यों ? पाप से भर प...
#दिनांक- १८/९/१७ #ईश्वर_वंदना #आधार_छंद_कुकुभ हे ईश्वर! करुणा सागर हम, बेसुध बालक अज्ञानी । हे दयानिधि! हे बुद्धिदाता!, कभी न हों हम अभिमानी।। तम, कलुष भेदो ज्योति रूपक, करुणाकर ...
#दिनांक 19/9/17 #दोहा_मुक्तक तरुवर छाया से घना , चेतन मन का ज्ञान बिन चेतन उपजै भरम, मन फलता अभिमान बात सुनो ये जो कहूँ, सत्य सदा मन भाय भर ले मन सद्भावना, कर जन का सम्मान #...
दिव्य ज्योतिर्मय है नभ,शक्तिरूप अवतार ये होकर सिंह सवार माँ, अद्भुत महि संहार ये त्रिनेत्री मुख तेज लिए,शीश मुकुट छवि धारिणी लेकर खड्ग भाल गदा,हे देवी जग तारिणी लाल वस्त्...
#दिनांक-24/9/17 #मुक्तक 1222 1222 1222 1222 सुधा साहित्य शीतल धार जन जन में प्रवाहित हो सदा संवेदना के भाव मन मन में समाहित हो अछूता हो नहीं इक- बाल भी अपनी ...
मुक्तक बड़ी प्यारी बड़ी भोली तू सबकी ही दुलारी है। गई ममता से है सींची कीे लाडों से सँवारी है। खिले तू फूल सी चमके सितारों सी जहाँ में यूँ- तुझे देखूँ यही लगता गई नभ से उतारी है...
#दिनांक-29/9/17 #चेहरा एक चेहरा मासूमियत संग थकान ओढ़े हर रोज ज़िंदगी को - तिनके तिनके सा जोड़े यथार्थ नहीं किंतु... आँखे भींच पल पल रोते देखा है नींद की तलाश में- रातें - पलकों पर ढोते देख...
#दिनांक -1/10/17 #यादों_का_शहर "वक़्त " - दौड़ती पटरियों सा गुजरता है चलती रेल के बाहर ...... भावुक रफ़्तार से - पीछे छूटता चला जाता है मेरी यादों का शहर......... वही शहर , जहाँ- रिश्तों से सजी इमारतें , इम...
#दिनांक- 2/10/17 #चौपई #1 भला वही- जो साधे मौन सच को सुनना चाहे कौन निश दिन बढ़ती उनकी शान सदा करें जो सच का मान #2 धोती लाठी जिनका भेष उनकी राह चला ये देश मातृभूमि की हो जयकार सत्य अहिँसा क...
#दिनांक-3/10/17 #ग़ज़ल #रदीफ़- आज फिर 212 212 212 212 देख लो छा रही है घटा आज फिर झूम कर बह रही है हवा आज फिर सामने देख तुमको खिली हर कली दिल सुनो बांवरा हो उठा आज फिर देख...
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 अनथक तू चलता जा प्यारे अविरल तू बहता जा प्यारे सफलता पथिक मित्र बने- फूलों संग फलता जा प्यारे 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 #प्रियंका_सिंह
#दिनांक- 7/10/17 हम बाल बालिका भाव पथिक सर्व- स्नेह अंकुर खिलाएंगे अज्ञान तिमिर कर दूर मन में अनुपम ज्ञान ज्योति जलाएंगे हिय स्नेह संवेदना संचार हो छल कपट दंभ उपचार हो - मानवता- क...
लीजिए एक #गीत और गुनगुनाते रहिऐ दिनांक -28 /12/17 विधा -#गीत ********************* 212 212 212 212 खिल उठा देख लो इश्क़ का ये चमन क्यों झुकें से हुऐ है ये' तेरे नयन जो बसाने चले आशियाँ प्यार का छोड़ दो तुम ल...
#दिनांक - 29/12/17 #ग़ज़ल 122 122 122 122 लगा कर क्यों मरहम सज़ा दे रहे हैं। पता है हमें वो दगा दे रहे हैं। लबों पर हँसी क़त्ल के हैं इशारे इरादे वो हमको बता दे रहे हैं। ज़रा कह भी दो साज़िशें क्या है उ...
#नियति घड़ी के रंगीन पटल पर अंकित अंकों को निहारा था मैंने ... एक टक कानों की टेढ़ी मेढ़ी बनावटी राहों से फिसलती हुई "टिकटिकाहट" की आवाज़ पैठ रही थी.. मन में और जकड़ रही थी कलेजे को ऐसे ...
#सच्चा_झूठ सच ....झूठ कह रही हूँ कि खूब समझते हो तुम तुम्हारी ओर से फिर चुकी कभी ग़ुस्सैल कभी हताश निगाहों की भाषा सच ....झूठ कह रही हूँ तुम्हारी हृदय भेदी बातों की आड़- से भी नहीं निहा...
#मुक्तक 2122 2122 2122 212 हिन्द की पावन धरा अब जल रही रार से आज क्यों झूठे हैं रिश्ते नेह के अधिकार से दीप्त सूरज भी यहाँ इक रूप है भगवान का आप भी निर्बल को बल दो भावमय उपकार से #प्रियं...
#दोहें मानव काया में जनम ,स्नेह प्रेम के संग। लोभ कुटिल सम आचरण, मानवता पर व्यंग। हुई प्रदूषित भूमिजा , हरियाली मुरझाय। कृत्रिम शोभा से सभी, जन मन को भरमाय।। रिश्ते नाते छूटत...
निसदिन मानव मानवता की ,भूल रहा परिभाषा है तार तार होती नित वसुधा , होता रोज़ तमाशा है आदि शक्ति देवी की प्रतिमा, जग में पूजी जाती है। होकर अवमानित फिर कन्या , तिरस्कार क्यों पा...