भ्रम

भ्रम
कई बार
अनायास ही उपज जाता है
मन के उजाड़ पड़े बागीचों में

यूँ ही कई बार घिर आता है
मन के सबसे पसंदीदा
हल्के काले रंग के बदलों की शक्ल में

देने लगता है मीठी सी गर्माहट
तेज बहती ठंडी हवाओं के मध्य भी

पर कब तक ?

जीवन में होने वाले सभी भ्रम
टूट जाते हैं एक दिन
बदलते ऋतुओं के साथ बदलती हैं
जीवित जगत की प्रत्येक कड़ियाँ
साथ ही बदल जाता है
प्रकृति में समाहित
प्रत्येक मूल का रूप

हो जाती है शुष्क
मिट्टी भी एक दिन
और  मुरझा जाते हैं
सभी खिले हुए फूल

हल्के काले घिरे बादलों के पीछे से
आती है कई तीक्ष्ण ध्वनियाँ
यथार्थ की गड़गड़ाहट लिए

तेज चलती हवाओं से
उड़ते हुए केश का
एक अंश चुभ जाता है
आँखों में
तब गिर पड़ता है
आँखों पर चढ़ा पर्दा

गिरने की चोट से अंततः
टूट जाते हैं सारे 'भ्रम'

#प्रियंका_सिंह

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