अभिलाषा
समय मिले तो..
दौड़ते हुए जीवन से
निकाल लूँ एक क्षण
निद्रा की मधु सानिध्य में
सुस्ताने को
कभी गंभीर, कभी बचकानी
सरीखे की बातें खुद ही खुद से
बतियाने को
समय मिले तो...
देख लूँ निथार कर
शिथिल निशा की कालिमा
स्फूर्त भोर की बगीया में खिलते
सुनहले सूर्य से छिटकती लालिमा
समय मिले तो...
गढ़ती जाऊँ
नीले कैनवास पर
छिटपुट बादलों से
बाल मन की चित्रकारियाँ
कुछ सफेद घोड़े, टूटी कश्ती
तितली ,फूल संग क्यारियाँ
समय मिले तो...
मूंद आँखे, खोल बाहें
रोम रोम को स्पंदित करते
स्पर्श से पहचान सकूँ
उस मधुरिम गीत का मुखड़ा
जिसके ध्वनि तरंगों से -
झूम उठती वृक्ष ,लताऐं
भूल निर्जन डाली,
फीकी हरियाली
पतझड़ में उजाड़ का दुखड़ा
समय मिले तो...
लगाऊँ टकटकी
पेड़ो की टहनियों पर टंगे
पत्तों के झुरमुट से
विशाल गगन की ओर
किन्हीं चिताओं से परे
अलमस्त उड़ते पंक्षियों के
श्वेत नील वतन की ओर
समय मिले तो...
ढूंढ लूँ फिर
जिजीविषा को समर्पित
कुछ नूतन अभिलाषा
जड़ होते जीवन के प्रति
उच्छवासित आशा
समय मिले तो ...
#प्रियंका_सिंह
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