यादों का शहर
#दिनांक -1/10/17
#यादों_का_शहर
"वक़्त " -
दौड़ती पटरियों सा गुजरता है
चलती रेल के बाहर ......
भावुक रफ़्तार से -
पीछे छूटता चला जाता है
मेरी यादों का शहर.........
वही शहर , जहाँ-
रिश्तों से सजी इमारतें ,
इमारतों में समाहित
बेपरवाह मुस्कान भरा
"घर- आँगन"
ममता की छाँव से-
मीठी ऊँघ में मग्न
"बाग - बगीचे"
वही शहर , जहाँ-
कहीं कुछ संबंधों की
"चहल-कदमी"
कहीं कुछ रिश्तों के नोकझोंक,
की शोरगुल से गूँजता
"चौक-चौराहा"
वहीं शहर , जहाँ
परेशानियों से तंग ,
कभी गोद में मुँह छिपाते
कभी कंधे पर सिर टिकाते
एक सुकून भरा बसा
"रैन-बसेरा"
हर क्षण पटरीनुमा गुज़रते-
वक़्त के साथ
पीछे छूटता चला जाता है
मेरी यादों का शहर.........
#प्रियंका_सिंह
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