रिक्तता


वास्तव में
नहीं होता कोई भी स्थान
सम्पूर्ण रिक्त
अपनी सारी शक्ति से
भींच ली गई मुट्ठी के मध्य भी
शेष रह जाता है
सूक्ष्म से भी सूक्ष्म
रूप में खाली एक भाग
जिसे उसी समय
भर रही होती है
त्वचाओं के स्पर्श से उत्पन्न
अदृश्य ऊर्जा
यथार्थ में रह कर
जिस समय को
अतीत कह रहा होता है कोई
वास्तव में उस क्षण में भी
जी  रहा होता है वो स्वयं ही
अपने प्रिय अप्रिय अतीत को
और एक बार फिर
कर रहा होता है
अतीत की शिलाओं से
यथार्थ का नव निर्माण

#प्रियंका

Comments

Popular posts from this blog

दोहा(गणेश वंदना)

#मोबाइल

#और_कितनी_शिकायतें_हैं_तुम्हे_मुझसे