लगाकर कर क्यों मरहम
#दिनांक - 29/12/17
#ग़ज़ल
122 122 122 122
लगा कर क्यों मरहम सज़ा दे रहे हैं।
पता है हमें वो दगा दे रहे हैं।
लबों पर हँसी क़त्ल के हैं इशारे
इरादे वो हमको बता दे रहे हैं।
ज़रा कह भी दो साज़िशें क्या है उनकी
अगर ज़ख़्म को वो हवा दे रहे हैं।
मिटा दो किसी को यूँ आसां नहीं है-
सुनो हम तुम्हें यह बता दे रहे हैं।
अरे छोड़ भी दो ये नादानियाँ 'प्रिय'
यही आख़िरी मशवरा दे रहे हैं।
✍प्रियंका सिंह
Comments
Post a Comment