गुरु को प्रणाम
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गुरु को प्रणाम मेरा
विधा का न ज्ञान मुझे
न्याय कर न पाऊँ तो
मुझे सिखलाइये
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लड़खड़ाती हूँ चली
कवित्तशाला की गली
हो कहीं जो भूल यदि
तो सुधार जाइये
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शब्द भावमय बहे
पंक्ति अर्थमय रहे
तूलिका चलाऊँ ऐसे
मार्ग दिखलाइये
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नव कुसुमित कली
सुमन बनने चली
आकांक्षी शुभाशीष की
स्नेह बरसाइये
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#प्रियंका_सिंह
पुणे (महाराष्ट्र)
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