बेजुबान जीव पलता है
#दिनांक - 19-07-2017
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ऊंची लंबी इमारतों के नीचे
नन्ही नन्ही अखियाँ मीचे
बेज़ुबान जीव पलता है...
हाथ फटी बोरी लिए
कबाड़ चुनने को भी देखो
वो बड़े शान से चलता है...
कहां भाग्य में उसके
दूध, घी, दही, मिठाई
दो जून को रोटी जुगाड़े
कली रूप बचपन मुरझाई..
इसी उम्र में पैर फटी बिवाई
काले गंदे चेहरे पर कैसे -
जिजीविषा है मंद मुस्काई...
जब रुतबे की नोक पर
सारा शहर चलता है ...
तब भूख की आग से वो
पेट, पीठ, आंत हथेली मलता है ...
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✍स्वरचित
#प्रियंका_सिंह
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