काव्य गीत(भूल)
#दिनांक- 7/9/17
#विषय #भूल
जब हिय अधीर हो जाता है
जब मन सहसा मुरझाता है
मुख बात पड़ी रह जाती है
हर आशा धरी रह जाती है
जब तुझसे संगति होती है
मेरे हिय -- दुर्गति होती है
छिप छिप के अश्रु निकलते है
प्रिय भाव शिला भी पिघलते है
एक रोष भाव मन में भरता
फिर प्रेम उड़ेलूँ मन करता
हर बार ये दुविधा मन मे रही
क्या मैं कोई अब तेरी नहीं
जो मैं तुमको इक भूल कहूँ
निज प्राण निकलते कैसे सहूँ
लो मान लिया कि भूल हुई
तेरे लिए राहों कि धूल हुई
हा भूल की सजा मिली मुझको
क्या क्या बतलाऊँ मैं तुझको
कभी आ बैठ जा पास मेरे
की टिकाऊ सिर कंधे पे तेरे
ये हिय रह रह अकुलाता है
सुन मेरा मन मुरझाता है
#प्रियंका_सिंह
#विषय #भूल
जब हिय अधीर हो जाता है
जब मन सहसा मुरझाता है
मुख बात पड़ी रह जाती है
हर आशा धरी रह जाती है
जब तुझसे संगति होती है
मेरे हिय -- दुर्गति होती है
छिप छिप के अश्रु निकलते है
प्रिय भाव शिला भी पिघलते है
एक रोष भाव मन में भरता
फिर प्रेम उड़ेलूँ मन करता
हर बार ये दुविधा मन मे रही
क्या मैं कोई अब तेरी नहीं
जो मैं तुमको इक भूल कहूँ
निज प्राण निकलते कैसे सहूँ
लो मान लिया कि भूल हुई
तेरे लिए राहों कि धूल हुई
हा भूल की सजा मिली मुझको
क्या क्या बतलाऊँ मैं तुझको
कभी आ बैठ जा पास मेरे
की टिकाऊ सिर कंधे पे तेरे
ये हिय रह रह अकुलाता है
सुन मेरा मन मुरझाता है
#प्रियंका_सिंह
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