दोहा गीतिका(माँ)

#दिनांक-26/8/17

#दोहा_गीतिका

मात जो जननी मेरी, ईश्वर का वरदान
चरन पखारूँ आपके , सम ईश्वर उपमान (1)

छाया आँचल की घनी, दे सुख शीतल छाव
ममता की माया बड़ी, कैसे करूँ बखान (2)

माता के आशीष को ,बार बार ठुकराय
जिस काया माया नहीं , व्यर्थ करें अभिमान(3)

पूत कपूत न तुम बनो, मात कुमात न होय
माता देवि स्वरूप है,वही परम गुण-ज्ञान(4)

मीठे बोल न बोलता, मन मे दंभ समाय
दिया जन्म जिसने तुझे, क्यों उसका अपमान(5)

वृद्ध माता पड़ी रही, भोगी कष्ट अपार
झूठी माया में करे, अपना तू गुणगान(6)

नारी को लक्ष्मी कहें,करे आप घर वास
माता भी एक रूप है,रहे मान का ध्यान(7)

मम निवाला तुझे दिया,आप क्षुधा को मार
दे समय उस मैया को, है यही महादान(8)

निद्रा भी जाती रही, सुन कर बाल पुकार
प्रेम,सानिध्य से भरा, करुणा रूप महान(9)

माँ पुत्री दो रूप भले, दो काया इक प्राण
बने कभी सखि रूप ये, कभी है गुरु समान(10)

मन प्रिय सखा स्वरूप सा, दे विपदा में साथ
माता वह ममतामयी,सर्व गुणों की खान(11)

#प्रियंका_सिंह

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