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Showing posts from 2017

#दो_अंत_विदाई_प्रियवर_को

#दो_अंत_विदाई_प्रियवर_को ================== देखा था बन्द आँखों से उड़ता हुआ इक प्राण पखेरू थी श्वेत सहज सरल सी आभा था कुछ परिचित अनजाना सा बढ़ता गया वह दूर गगन में लगा हिय को पहचाना सा भींच गई फिर सहसा मुट्ठी थे जकड़ गए कई बोल जब कानों में ध्वनि पड़ी वह करुण रुदन - द्रव भाव अमोल तभी भान हुआ कि ... टूट गया है घेरा अपना बिखर गया एक भाग चटक गई एक रीढ़ की हड्डी फिर जली चिता की आग उठ रही थी मुस्काती लपटें मृदु स्नेह तपिश बरसाते हुए संग प्रस्तावित - धैर्य की लपटे भाव विरह भरमाते हुए हो उठा प्रत्यक्ष वो मुखड़ा पाट उर के गह्वर को "अब नील गगन की ओर बसेरा दो अंत विदाई प्रियवर को" ✍प्रियंका सिंह

तुम्हें पता है?

तुम्हे पता है? हर गुज़रते क्षणों को देख अनायास ही झुंझला जाती हूँ घड़ी की बढ़ती सेकेण्ड मिनट और घंटे की सुईयों के साथ बढ़ती चली जाती है मेरी खीझ, हताशा और मेरा रोष तब सहज ही भान होता है हताहत होती मेरी भावनाओं का निःसहाय मूक होती संवेदनाओं का कैसे.... आखिर कैसे तुम नहीं समझ पाते मेरी कही अनकही बातों को वक़्क्त चाहिये तुम्हें? अंततः किस बात के लिए वक़्क्त? - मुझे संभाल सको उसके लिए या मात्र एक नए छलावे को - गढ़ और बुन मुझपर आरोपित कर सको घर के खाली कमरों को देख ये ख्याल भी मन मे कौंध जाते हैं - कि खाली हो रहा है मेरे ख़ुशनुमा जज्बातों का खजाना हर खिसकते खोते पल के साथ एक ही ख्याल सच मन को रौंध जाता है की.......तुम नहीं वजह नहीं जानना मुझे या जानती हूँ...... किन्तु बेज़ान व शिथिल हो रहे मेरे देह  के भीतर का अबोध अचेतन मन नहीं स्वीकारना चाहता सत्य को नहीं स्वीकारना चाहता - सत्य के किन्हीं कारणों को ... वह तो केवल रुष्ट है व्याकुल है हताश संग निराश है जहां तुम हो सकते थे.... पर हो नहीं.... देहरी में सुने चप्पलों की कतार , घर के खाली कमरें , बेपरवाह घड़ी...

बीआरडी मेडिकल घटना(घुटती जानें)

#दिनांक- 13/8/17 #घुटती_जानें हो गई कितनी गोदे सूनी किसे कहे उन लालों का ख़ूनी जिन्हें संजोया गर्भ के आशय नौ महीनें जिसे सुलाया लल्ला लोरी गा रात रात भर लगा के सीने जिसकी सूरत , काया में- सुकून की साँसें भरता अपने लाल को देखा दम घुट घुट साँसें मरता इतनी नन्ही मौतों का कहो अपराधी कौन है आँखों देखा हाल सभी का , फिर भी निष्ठुर नगरी मौन है जाने कितनी मईया के आंखों के तारें दफ़न हुए माटी माटी राज हित मे जारी हाय....नीति की भाषा नित नित समझ न आती #प्रियंका_सिंह

हाइकु (बाल मुरारी कृष्ण)

#दिनांक -14/8/17 #शुभ_जन्माष्टमी #हाइकु 1    खुशी मनाओ       कन्हैया घर आयो        सोहर गाओ 2     मोर मुकुट      प्रभु भये प्रकट        मिटे संकट 3    माखन मिश्री      नयी नयी बाँसुरी        रीझे बिहारी 4       दीन दयाला        प्रगट कृपाला        भार संभाला 5    बर्फी मिठाई      कृष्ण जन्म बधाई        स्व बिसराई #प्रियंका_सिंह

ग़ज़ल (तिरंगा)

#दिनांक- 15/8/17 #स्वतंत्रता_दिवस_की_बधाई #ग़ज़ल 1222    1222  1222  1222 तिरंगे    नाम पर  कुर्बान है     यूँ जान अपनी ये रहे ऊँचा   वतन का ओहदा    है शान अपनी ये सुनो तुम पाक हो या चीन हो है वक़्त संभल जा यही पैगाम   देते है   न भूलो    मान    अपनी ये अगर ख़ामोश हम समझो न कमजोरी हमारी यूँ अभी है  जोर साहस से भरी  पहचान  अपनी ये इसी  माटी में जन्मे  है भगत  आज़ाद   जैसे जन हँसी के साथ दिए थे तब प्राण बलिदान अपनी ये रहा   रुतबा   हमारा   शांति प्रिय    देश के जैसा बढ़ाओ हाथ   दोस्ती का   यही ईमान    अपनी ये #प्रियंका_सिंह

वर्ण पिरामिड (सावन)

#दिनांक-  31/7/17 #विषय - सावन                   है                  वन                 सघन                उपवन            आया सावन           मृदुल    पावन       खिली   कली   सुमन               (1)                        ॐ                      भाय                     सुखाय                   स्व  हिताय                 श्रावण  आय                मन     भरमाय     ...

विधा चोका(सावन)

#दिनांक- 29/7/17 #दोहा #सावन सावन रंग हरा हरा  , मन आनंद समाय शिव की पूजा अर्चना, जीवन शुभ सोहाय भाय सावन शिव को जो,गूंजे जय जयकार आप प्रभु तो भोले है महिमा अपरंपार सावन में झूले पड़े , हिय पाखी बन जाय बरसे बदरा जो घनी , मन उमंग भर जाय हाथ मेंहदी से भरी, कुमकुम लाल सुहाय पिया दरस जो ना मिले, सावन तनिक न भाय #स्वरचित #प्रियंका_सिंह

दोहा(सावन)

#दिनांक- 29/7/17 #दोहा #सावन सावन रंग हरा हरा  , मन आनंद समाय शिव की पूजा अर्चना, जीवन शुभ सोहाय भाय सावन शिव को जो,गूंजे जय जयकार आप प्रभु तो भोले है महिमा अपरंपार सावन में झूले पड़े , हिय पाखी बन जाय बरसे बदरा जो घनी , मन उमंग भर जाय हाथ मेंहदी से भरी, कुमकुम लाल सुहाय पिया दरस जो ना मिले, सावन तनिक न भाय #स्वरचित #प्रियंका_सिंह

वर्ण पिरामिड

#पिरामिड                       ये                     दिल                  मुश्किल                अब    मिल               बीतें   ये   पल             मैं   तेरे   क़ाबिल           तू  गुलाब सी  खिल #डमरू          हाथ  लिए  दिल            यादें  धूमिल               संगदिल               आ मिल                 फूल                 शूल               चोटिल             हो शामिल ...

वर्ण पिरामिड

#पिरामिड                       ये                     दिल                  मुश्किल                अब    मिल               बीतें   ये   पल             मैं   तेरे   क़ाबिल           तू  गुलाब सी  खिल #डमरू          हाथ  लिए  दिल            यादें  धूमिल               संगदिल               आ मिल                 फूल                 शूल               चोटिल             हो शामिल ...

वर्ण पिरामिड

#पिरामिड                       ये                     दिल                  मुश्किल                अब    मिल               बीतें   ये   पल             मैं   तेरे   क़ाबिल           तू  गुलाब सी  खिल #डमरू          हाथ  लिए  दिल            यादें  धूमिल               संगदिल               आ मिल                 फूल                 शूल               चोटिल             हो शामिल ...

वर्ण पिरामिड

#पिरामिड                       ये                     दिल                  मुश्किल                अब    मिल               बीतें   ये   पल             मैं   तेरे   क़ाबिल           तू  गुलाब सी  खिल #डमरू          हाथ  लिए  दिल            यादें  धूमिल               संगदिल               आ मिल                 फूल                 शूल               चोटिल             हो शामिल ...

वर्ण पिरामिड

#पिरामिड                       ये                     दिल                  मुश्किल                अब    मिल               बीतें   ये   पल             मैं   तेरे   क़ाबिल           तू  गुलाब सी  खिल #डमरू          हाथ  लिए  दिल            यादें  धूमिल               संगदिल               आ मिल                 फूल                 शूल               चोटिल             हो शामिल ...

ग़ज़ल (सैन्य जीवन)

दिनांक 27/7/17 #सैन्य_जीवन #ग़ज़ल #काफ़िया - आते #रदीफ़ - रह गया फाइलातुन  फाइलातुन  फाइलातुन फाइलुन 2122.          2122.    2122.      212 प्यार के अब इस वतन में मैं जां लुटाते रह गया इश्क़ के ऐसे चमन में मन मिलाते रह गया पास है जो याद तेरी जान मेरी आज सुन हमनवां हाँ मैं दिलों में गुल खिलाते रह गया गर्दिशों में ढल रहे यूँ जानिए ज़ज्बात हैं अब सनम क्या क्या कहूँ सबकुछ भुलाते रह गया ज़िंदगी ये इस वतन पर मैं लुटाने को चलूँ नाम तेरे हर वफ़ा खुद की जताते रह गया कर चला अब जान मैं कुर्बान भारत को सुनो माफ़ कर मैं इस जनम वादें निभाते रह गया #स्वरचित #प्रियंका_सिंह

मुक्तक

दिनांक २६/७/१७ #मुक्तक गगरी  धरी  जात  गोरी  पनघट है कान्हा  हाय छेड़े   बड़ा नटखट है चुनरिया लहराये कभी सरकत जो बाँधे  कटि आँचल  दौड़े सरपट है #स्वरचित #प्रियंका_सिंह

फिर दो दिलों को यूँ आपस में टकराने दो

दिनांक -25/7/17 आज चंचल मन बैठा है गुमसुम कोने में आज चोटिल हिय व्यस्त व्याकुल रोने में कुछ समय - आप ख़्वाबो को बहलाने दो फिर दो दिलों को यूँ आपस में टकराने दो मांगते हम क़ल्ब एहमियत जो दे कसम सुनो टूटते है दिल ही दिल मे हम सनम उलझी पड़ी बाते बीच हमारे सुलझाने दो फिर दो दिलों को यूँ आपस में टकराने दो मिले है दिल को भी कई ज़ख्म जो कैसे सहे इस बेरुख़ी में ये आलम कैसे   हम क्या कहे चार नयनो से अश्क़ हाला छलकाने दो फिर दो दिलों को यूँ आपस में टकराने दो अभी दो पहर की ही तो जान थी ये  जुदाई जुदा हो भी तो कैसे तू साया मैं तेरी परछाईं इस प्रिय को आप प्रिय पर प्यार लूटाने दो फिर  दो दिलों को यूँ आपस में टकराने दो #प्रियंका_सिंह स्वरचित

मुक्तक((मन का कोना)

24/7/17 आज मन का एक कोना रिक्त किया आज फिर ये बेकल हिय मौन जिया तुम मेरे नेह के बंधन से आज़ाद हुऐ आज मैंने तुम्हें स्वमं से है मुक्त किया ©प्रियंका_सिंह

तांका

#विधा - #तांका #1 -       हुआ सवेरा         फैला अभी अंधेरा            काले बादल         कड़कती बिजली         झमाझम बारिश   #2 -        रात - सवेरे          बूंद बनी आफत             फैला कीचड़          चारो तरफ नमी          प्रातः हाल बेहाल #स्वरचित #प्रियंका_सिंह 24/7/17

हाइकु(रास्ता)

#दिनांक - 22/7/17 #विषय-  #रास्ता                                     #हाइकु 1              हुए स्वदेशी              प्रेम मार्ग अन्वेषी                 गुण विदेशी 2             प्रेम का मार्ग             दिखी धरती स्वर्ग                 स्वार्थपरक 3             शुभ जीवन                गदगद है मन                रास्ता कठिन 4            गांजा व भांग             रास्ते मे हुड़दंग                पुजारी तंग 5            राह कठीन ...

हाइकु(हँसी)

#दिनांक  21/7/17 #विषय - #हँसी                   #हाइकू 1           जीव नादान           हँसी मुख मुस्कान              बालक ज्ञान 2           वह मुस्काया           हँसी द्वेष छिपाया             जग है माया 3           झूमे रागिनी          हँसी ज्यों विहंगिनी             मुक्त बंदिनी 4            कपटी हँसी            चारों दिशाएं दिखी             मन साहसी 5           प्रिय सुजान            हंसे हँसी अंजान               प्रेम विधान #स्वरचित #प्रियंका_सिंह

ग़ज़ल(कहो जरा)

#दिनांक- 21/7/17 #काफ़िया -ओ #रदीफ़ - ज़रा #वज़्न 2122               1212 बात दिल की    कहो ज़रा पास मेरे           रहो ज़रा ख्वाब सारे       लिए खड़े साथ मेरे          चलो ज़रा राज़ मुझमे      छिपे नहीं ये यक़ी तुम     करो ज़रा सर झुकाए      खड़े यहीं आरज़ू ये        रुको ज़रा है दुआ ये       कहूँ तुझे हमनवां तुम    मिलो ज़रा ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

ग़ज़ल(आवाज़ दी लौट आया करो()

#दिनांक -20/7/17 #काफ़िया- आ #रदीफ़ - करो                               #ग़ज़ल #बहर 212     212     212     212 जान  आवाज़ दी   लौट आया करो संग  पल कुछ  हमारे  बिताया करो दिल लिए है अभी  जान अरमां  कई ख्वाहिशें तुम सुनो पल न जाया करो दिल  हमारा अभी जो  भरा भी नहीं पास बैठे रहो        गुनगुनाया   करो गर हुई जो ख़ता  भूल कर  अब उसे फिर गले से  मुझे तुम   लगाया करो छोड़  शिकवें सभी   ये सुनो रहनुमा दर   हमारे कभी   सर झुकाया करो #स्वरचित #प्रियंका_सिंह

छंदमुक्त (बाज़ार)

#दिनांक- १९/७/१७ #विषय -#बाज़ार #विधा- #छंदमुक्त ओ साहब ... क्या तुम बेरोजगार हो? सारी गुण गुणवत्ता लिए भी कहो ..अब भी क्या बेकार हो?  सोचा...क्या करना तुम्हे व्यपार है? होंगी सर तुम्हारे भी जिम्मेदारी अगर पास तुम्हारे अपना घर द्वार हैं देखो ये बाज़ार है साहब यहाँ हर चीज़ बिकाऊ है लो सच यह भी सुनो नहीं कोई चीज़ यहाँ कि टिकाऊ है ये बाजार है साहब रिस्वतख़ोरी की एक सिलसिलेवार तरीका - अपने भंडार से आप अनाज की चोरी की ये बाजार है साहब राजनीति की यहाँ हर पैंतरे है बिकते हमारे राजकीय कूटनीति की यहाँ कोई सेवक नहीं, सभी भरे दाता है सुनो गौर से ... गलती से भी इन्हें ख़ामियाँ न बताना सदविचार यहाँ किसी को न भाता है ये बाज़ार है साहब.... ईमानदारी के छिटके हर पुर्ज़े का ढूंढो ज़रा ...यहाँ केवल संत मिलेंगे दैत्य-दानव ,कपटी , लोभी हर दर्जे का ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

बेजुबान जीव पलता है

#दिनांक - 19-07-2017 ############################ ऊंची लंबी इमारतों के नीचे नन्ही नन्ही अखियाँ मीचे बेज़ुबान जीव पलता है... हाथ फटी बोरी लिए कबाड़ चुनने को भी देखो वो बड़े शान से चलता है... कहां भाग्य में उसके दूध, घी, दही, मिठाई दो जून को रोटी जुगाड़े कली रूप बचपन मुरझाई.. इसी उम्र में पैर फटी बिवाई काले गंदे चेहरे पर कैसे - जिजीविषा है मंद मुस्काई... जब रुतबे की नोक पर सारा शहर चलता है ... तब भूख की आग से वो पेट, पीठ, आंत हथेली मलता है ... ############################ ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

वर्ण पिरामिड

#वर्ण_पिरामिड #दिनांक - 19/7/17 #विषय-                                          #छाया                                  माँ                                 मोह                                ममता                              प्रभु माया                            स्नेह लुटाया                         करुणा की छाया                      आशीष   मैंने   पाया    ...

आधार छंद विधाता(प्रेम)

दिनांक- 18/7/17 #विधाता_छंद 1222.  1222.  1222.  1222 सुनो फिर आज ख्वाईशें  जवां अपनी कही ना हो सुनो फिर आज  वो ख्वाबो भरी बातें  बयां ना हो कभी थी   वो हमारी रात   जिसमे बात ही ना थी हमारे साथ से      पूरी न हो   सौगात    वो ना थी हज़ारों महफिले कुर्बान     जो हमने किये जानम गर कहें तो बयां ना हो सके  उलफत सुनो जानम दिलो के गम सितम हमने सुनो   क्या खूब झेले है बचे बस अब  दिलों मे याद   वो फ़रियाद   मेले है जड़े हमने   कई ताले   दिलों की    बदगुमानी पर अभी भी  है कहीं  तेरी सनम  दिल मे निशानी पर रही जो बात दिल मे वो बताओ तुम ज़रा दिलबर कहीं फिर  खो न जाये   बेवफाई  नाम से  रहबर #प्रियंका_सिंह

मुक्तक(व्यथा)

#दिनांक - 17/7/17 #मात्राभार- 18                             #मुक्तक            कासे कहूँ   अपने   मन की व्यथा            फिरूँ बन के बेकल बिरहन  यथा   (जैसे)            मन की टीस   दबी जाए    मन मे            कौउन सुने कुहक़त मन की कथा ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

विधाता छंद(राधा)

#विधाता_छंद #मापनी 1222.  1222.  1222.  1222 तनिक धीरज धरो बातें हमारी ये सुनो राधा कहाँ कान्हा बजाए निज मधुर मुरली सुनो राधा सुनो नटखट  बड़ी राधा बनो सजनी कहे कान्हा नहीं भायी कभी मुझको कहूँ कोई  कहे कान्हा बड़े चंचल हमारे हिय बसेरे प्रभु जपे गोपी दिखाओ तुम कभी लीला हमें अपनी जपे गोपी धरे गिरि वह मनोहारी रसीले पिय भजे मीरा सुगंधित तन स्व मन उपवन सजीले पिय भजे मीरा #प्रियंका_सिंह 17/7/17

भोजपुरी कजरी गीत

#कजरी_मेला #कजरी_गीत कबले अइहें पियवा हमार...... ऐ हरि देखअ तानी रहिया कबसे खड़ी खड़ी  -२ दिन बीतल तोहका देखे मुँह मुर्झाइल बा सजल कबसे छूटल  केश ओझराइल बा रोइ रतिया बीते सेजिया पर पड़ी पड़ी कबले अइहें पियवा हमार .......ऐ हरि -२ सावन के   ई बुनिया बड़   बौराइल बा कासे कहि हम दुखवा पिय न आइल बा पतराईल देहिया मनवा कुहके बड़ी बड़ी कबले अइहें पियवा हमार .......ऐ हरि -२ तीज तेव्हरिया नीक न लागे आवा ऐ बलम सुन भइल अंगनिया तू घरे आवा ऐ बलम जड़े ई मनवा अईसे ना सतावा ऐ बलम बरसे ला अखियाँ   देहरी के  धरी धरी कबले अइहें पियवा हमार .......ऐ हरि -२ कबले अइहें पियवा हमार...... ऐ हरि देखअ तानी रहिया कबसे खड़ी खड़ी- २ #प्रियंका_सिंह #स्वरचित दिनांक-16/7/17

कजरी गीत भोजपुरी (सावन)

#भोजपूरी #कजरी_मेला #सावन_गीत सुनी ल तनि पियवा हमार बतिया देखा..कईसे छेड़े है हमार सखिया -२ काहे नाही तू अइला अबकी सावन में नइखे गुंजत  तोहर बतिया ई कानन में तरस गइल बा देखा ई हमार बहिया देखा..कईसे छेड़े है हमार सखिया -२ पड़ गइल बा झुलुआ देखा बगिया में अब केकर संगे झूली बोला सथिया में केऊ जनी ईहा  सुने ना हमार बतिया देखा..कईसे छेड़े है हमार सखिया -२ केसे कहि  देखे ला  मेहदी  हथवा के कउन कहि नीक लागे बिंदी मथवा के सुनी ल तू तनि हमरी गुहार पियवा देखा..कईसे छेड़े है हमार सखिया -२ झम झम झम बरसावे पनिया बदरा हो बिना तोहरे देखा पसरे कईसे कजरा हो काहे ना देखला पियवा हमार  नेहिया देखा..कईसे छेड़े है हमार सखिया -२ सुनी ल तनि पियवा हमार बतिया देखा..कईसे छेड़े है हमार सखिया -२ #स्वरचित #प्रियंका_सिंह

आशियाने के लिए

दिनांक - 15/7/17 विषय -#पंक्ति_आशियाने_के_लिये मन में है इक सपना ख़ूबशूरत आशियाने के लिए बेकल सी विरहन जीवन में ठहर ठिकाने के लिऐ एक छोटा आँगन हो संग जिसमे सखि साजन हो सारी दुनिया एक ओर   सब छोर भुलाने के लिए एक हरी सी बगियां हो वहाँ भरी खिली कलियां हो जो रूठे पिया कभी सुन सखि उन्हें रिझाने के लिए छोटा सा फ़साना बने मेरे ख़्वाबो को ठिकाना मिले दोनों हाथ भर खुशियाँ  सुन सखि   लुटाने के लिए करूँ कभी नमन कभी करे ये "प्रिय" कर जोड़ वंदन आदिशक्ति देवो की अनुकंपा स्व शीश पाने के लिए #स्वरचित #प्रियंका_सिंह

हाइकु(हवा)

दिनांक - 15/7/17                                                    #हाइकू विषय- #हवा 1         बालक दौड़ा         बायु युक्त गुब्बारा            यांत्रिक माया 2          बहे पवन          कुसुमित सुमन            चंचल मन 3         शीत बयार           सतरंगी फुहार             प्रेम बहार 4           तीव्र बयार            है दुर्गन्ध अपार              दिव्य संसार           5           तीव्र अनिल          उद्वेलित सलिल            ...

लघुकथा(मौसम)

१४/७/१७ #लघुकथा  #विषय-                   #मौसम                आज फिर मौसम बहुत खराब हुआ पड़ा था..कहीं बाहर दूर दराज के आसमानों में नहीं बल्कि शीतल के मन मे .मन में आज फिर कई भवनाओं के बादल आपस में टकरा रहे थे जिससे जन्मी बिजली सी कड़क आवाज खाली पड़े घर में किचन के बर्तनों को जोर जोर से पटकने के रूप में आ रही थी ।जैसा कि हर बार होता आया साथ ही स्थियों के जायजे से समझ आ रहा था कि थोड़े ही देर में मन के बिगड़े इस मौसम में आँसुओ की बरसात होने ही वाली है ,हो भी क्यों ना आज फिर शीतल का मन आहत हुआ था - पर उसमे नया क्या था वो तो रोज ही होता है रोज़ ही मौसम(मन) खराब होते है रोज़ ही बरसात(आँसू) होती है।".....क्या मैं इंसान नहीं, क्या मुझमे कोई भावनाएं नहीं ....क्यों बार बार वो ये जताते है कि मैं बस घर के काम के लिए ही हूँ ..अरे लोग जब अपने घर मेहरी भी रखते है तो बकायदा इज्जत के साथ उसे पगार देते है पर मेरी तो यहाँ उससे भी बुरी हालत है ...क्यों जीना ऐसी जिंदगी जहां अपने लिए घंटे में से एक सेकंड भी नहीं ..इज्...

ग़ज़ल(मिट्टी)

दिनांक - 14/7/17 #रदीफ़ -#मिट्टी लाल  लालिमा  लाली  घर आँगन मिट्टी देव भूमि  भारत की   बड़ी पावन मिट्टी होली - दीवाली  हो  या  ईद -  मोहर्रम भाव निहीत यहाँ उत्सव है सावन मिट्टी जुट कपास सरसो  चास  है खेत घनेरी अन्न अनाज  की पूर्ति  उपजावन मिट्टी सिर माटी का टीका होती माटी की पूजा हल्दी उबटन औषधि जाए लगावन मिट्टी पिया पतंग प्रेम मांझा हुए यहाँ मजनू रांझा सुगंधित प्रेम की यहाँ ढेरी  मनभावन मिट्टी ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

मुक्तक(विभावरी चंदा)

विधा -#मुक्तक दिनांक-13/7/17 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵 विभावरी- चंदा- चांदनी  मस्त बहार झूमती नदिया   गुंजित जुगनू गुंजार चंचल सुमन  दूब डालियाँ तारों संग झूले पर बैठी रागिनी       बहे बयार 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵 ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

ग़ज़ल(बताओ तो सनम)

#ग़ज़ल #बहर दिनांक- 13/7/17 2122        2122        2122       212 क्या खता मुझसे हुई है     ये बताओ तो सनम भूल कर सारी खताएं     पास आओ तो सनम जानता हूँ       है बड़ी नादानियाँ     मुझमे भरी रूठ जाऊँ जो कभी   फिर से मनाओ तो सनम छोड़ भी दो जान गुस्सा    दी कसम अपनी तुझे पास मेरे बैठ    फिर से तुम    सताओ तो सनम कब तलक मेरे सनम     गुम सुम रहोगे  यूँ भला दर्द जो      दिल में दबी तेरे    जताओं तो सनम लो पकड़ ली कान अब तो मान भी जाओ जरा अब न होगी गलतियां फिर आजमाओ तो सनम ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

अगर हमें सहिष्णुता दुलारे न होते

#रदीफ़ - #न_होते सुनो...अगर हमें सहिष्णुता दुलारे न होते सच ...आज गर्दिशों में  उनके तारे न होते जो किया ही था बँटवारा तो अलग हो जाते भाईचारे की आड़ में ऐसे दिन हमारे न होते कहीं न कहीं व्यवस्थाओं में ही ख़ामियाँ थी सच कहत हैं आज हम ऐसे बेचारे न होते छोड़ गद्दियाँ  तुम भाप जो पाते  बारूदी ताप कई मासूम सी जाने भगवान को प्यारे न होते नमकहरामी का दौर सदियों से चला आ रहा वरना कश्मीर के कुछ हिंदू साथ तुम्हारे न होते ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

कविता(आतंकवाद)

#दिनांक-12/7/17 #विषय-#आतंकवाद हे ईश्वर ....... जाने तुमसे कहां चुक हुई मानव की संवेदना देखो कैसे मूक हुई मानव ऐसा निर्मम कौन कहेगा दिन दिन मिलते घाव कहो कौन सहेगा "पाक" देश का वो - पापी आया साथ में अपने जाने कितनी खुनी गोलियों की सौगातें लाया हमें नही चाहिए निंदा कहो कौन होगा यहाँ इन मौतों पर शर्मिंदा लो कुछ तुम निर्णय कब तक देते रहोगे आतंकियों को आश्रय ये आतंकवाद है संवेदना के उपरांत ये घृणित अपवाद है अब समय है आया कड़ी निंदाएं छोड़ो उखाड़ फेंको आतंक की हर नसल को आतंकियों के नाम  हर एक फसल को ✍#प्रियंका_सिंह

पंच विधा संगम(बेटियाँ)

दिनांक - 12-07-2017 #विधा_मुक्तक हम दो नहीं    अपितु दर्पण है हम से खिला  घर - आँगण है रे बापू -   हमें बोझ    ना कह हम ही से   त्याग - समर्पण है #विधा_पिरामिड                           ले                          हम                         जनम                       है  संगम                     सखि   प्रेम                    बहन     हम                   संग     हरदम                 सहगर्भिणी  मम #विधा_सोदेका स्वरा सोनम दो नदी का संगम उत्तम सर्वोंत्तम स्वर स्वर्णिम चकोर ...

विधा तांका

#विधा_तांका अमर यात्रा समाप्त मानवता आक्रमकता निर्जीव संवेदना आतंक का हमला ✍#प्रियंका_सिंह 11/7/17

जन्म भूमि जान है

#दिनांक- 17/8/17 #ग़ज़ल 2122     1212 ये जनम  भूमि  जान है आत्म सम्मान   शान है हो यहाँ सत्य की विजय- फिर दिया आज ज्ञान है द्वेष को  मात   दो सदा- हर दुखों  का  निदान है प्रेम  की  वंदना    करो- भाव  ये  सुख  प्रधान है श्यामला  भूमिजा  यही- पूज्य  माता   समान  है #प्रियंका_सिंह

ग़ज़ल(इक मुलाकात मान जाइये)

#दिनांक- 18/8/17 #रदीफ़ - मान जाइए #काफ़िया - आत                #ग़ज़ल फ़ाइलुन मफ़ाइलुन फ़ाइलुन मफ़ाइलुन 212     1212    212    1212 हो हसीन इक मुलाकात मान जाइए आज इश्क़ की है' शुरुआत मान जाइए बस वफ़ा भरी सभी वादियां सजी यहाँ खत्म कर सभी सवालात    मान जाइए दिल रखा सनम यहीं अब कबूल जो करो सच खुदा कि हो करामात   मान जाइए बेरुख़ी सहें सनम       चेहरा न फेरना बेजुबां हर' एक   लम्हात   मान जाइए है यही अरज सुनो जान आज हो न ये- प्यार में फ़िज़ूल ज़ज्बात      मान जाइए #प्रियंका_सिंह

ग़ज़ल(बात मेरी सुनो)

#दिनांक 19/8/17          #ग़ज़ल 212    212     212     212 बात मेरी सुनो कुछ कहा मत करो- लौट आऊँ अभी ये दुआ मत करो जब कदर ही नहीं अब कसम की तुम्हें- तुम भरम आँसुओं से लिखा मत करो किस्मतों को बहाना बनाना ही' था- नेह की झूठ   रश्में अदा मत करो चाहतों का यही हाय अंजाम है- ये अरज मान बातें वफ़ा मत करो प्यार में बीते' लम्हें गवाही दिए- तुम सनम बेवफा अब मिला मत करो #प्रियंका_सिंह

कविता(जीवन एक सफर है प्यारे)

#दिनांक21/8/17 #छंदमुक्त             #सफर क्यों भटके दरबदर तू प्यारे जीवन एक  सफर है प्यारे तू राही बन - फिर सड़क है आगे बढ़ हिम्मत की- तड़क तू दागे... हर कदमों के निशां - निडर हो मुकम्मल राहें सफल,सशक्त लक्ष्य जिधर याद रहे... दुर्बलता की निशानी, थकान से निकली आह है तू रुक नहीं, तू झुक नहीं, जो कहीं हारे तन मन थम जरा, साँस ले क्यों आप हौशले की- मरोड़ता बाँह है याद रहे... हौशले आबाद रहें ,क्योंकि- जहाँ चाह है,वहाँ राह है सुन जीवन एक सफर है प्यारे मुख मुस्कान लिए यूँ ही- बढ़ता जा निडर तू प्यारे #प्रियंका_सिंह

छंद प्रधान मुक्तक(राधा)

#दिनांक- २३/८/१७ #मुक्तक #विधाता_छंद 1222.      1222.       1222.        1222 चली जो सिर धरी मटकी  दुलारी राधिका प्यारी। सुनो नित फोड़ते गगरी  मुरारी    राधिका प्यारी। नदी के तीर   ही बैठे    बजाये   हैं मधुर मुरली-     मगन हो झूमती सखियाँ भी' सारी राधिका प्यारी। #प्रियंका_सिंह

कविता(तुम धीर हो तुम वीर हो)

तुम...... हाँ तुम.. तुम धीर हो तुम वीर हो दृढ़ता की कड़ी-जंजीर हो प्रज्जवल अग्नि के ताप हो उज्ज्वल सूर्य का प्रताप हो तुम तीर हो तुम वार हो गर्जन सिंह की, दहाड़ हो सशक्त विचारों का तेज हो उम्मीदों का रंगरेज हो तुम चंद हो  प्रचंड हो निर्बल को दे सहारा वो दंड हो तुम अविचल सा अडिग रहो अमर हो ऐसी तुम कथा लिखो #प्रियंका_सिंह

हास्य कविता(राजनीति)

#दिनांक-26/8/17 #हास्य - विचित्र देश की राजनीति अज़ब गज़ब ये खेल सुनो आज लगी है जेलों में गुणी बाबाओं की सेल मिले साधु कहाँ ऐसा फॉरवर्ड जो भक्तों को भेजे - वीडियो मेल सिरसा की क्या वाट लगी है अरे.....खूब जलाये रेल सब देख दुखी मन चंगा हुआ- सुना   "बाबा इंशा गियो रे जेल" #प्रियंका_सिंह

दोहा गीतिका(माँ)

#दिनांक-26/8/17 #दोहा_गीतिका मात जो जननी मेरी, ईश्वर का वरदान चरन पखारूँ आपके , सम ईश्वर उपमान (1) छाया आँचल की घनी, दे सुख शीतल छाव ममता की माया बड़ी, कैसे करूँ बखान (2) माता के आशीष को ,बार बार ठुकराय जिस काया माया नहीं , व्यर्थ करें अभिमान(3) पूत कपूत न तुम बनो, मात कुमात न होय माता देवि स्वरूप है,वही परम गुण-ज्ञान(4) मीठे बोल न बोलता, मन मे दंभ समाय दिया जन्म जिसने तुझे, क्यों उसका अपमान(5) वृद्ध माता पड़ी रही, भोगी कष्ट अपार झूठी माया में करे, अपना तू गुणगान(6) नारी को लक्ष्मी कहें,करे आप घर वास माता भी एक रूप है,रहे मान का ध्यान(7) मम निवाला तुझे दिया,आप क्षुधा को मार दे समय उस मैया को, है यही महादान(8) निद्रा भी जाती रही, सुन कर बाल पुकार प्रेम,सानिध्य से भरा, करुणा रूप महान(9) माँ पुत्री दो रूप भले, दो काया इक प्राण बने कभी सखि रूप ये, कभी है गुरु समान(10) मन प्रिय सखा स्वरूप सा, दे विपदा में साथ माता वह ममतामयी,सर्व गुणों की खान(11) #प्रियंका_सिंह

दोहा(गणेश वंदना)

#दिनांक-26/8/17 सस्वर गायन - "#गणेश_वंदना" #दोहा काया उबटन से बने , आदिशक्ति के लाल गजमुख वरन गजानना, शोभित चंदन भाल मति कुबेर मारी गई, अपने धन इतराय गणपति लीला देखि जो, करनी पर पछताय चंद्र स्वरूप अहम भरा, श्वेत रंग जो पाय सूरत से सीरत भली, देवा पाठ पढ़ाय चरण वंदना मैं करूँ, माटी शीश टिकाय आप गणेशा को सदा, लडुअन भोग लुभाय देव गजानन गणपती, गौरी पुत्र गणेश तुम ही बुद्धिदाता हो, तुम ही हो प्रथमेश #प्रियंका_सिंह

कविता(वेदना)

#दिनांक- 28/8/17 #वेदना दिन दिन बीता जाये रे मोरा पिया नहीं सखी आये रे हिय मोरा नित कठुआये रे जाये नयन भी - भरमाये रे मन दुखड़ा किसे सुनाये रे विरह जल गोते खाये रे हाय दिन दिन बीता जाये रे मोरा पिया नहीं सखी आये रे #प्रियंका_सिंह

ग़ज़ल(तुमको मनाने आए है)

30/8/17 #ग़ज़ल 2122    2122     2122     212 आज कुछ अपने सनम को यूँ  मनाने आये है हम खिजाओ में गुलिस्तां को सजाने आये है अब भला तुम कब तलक रूठे रहोगे ओ सनम सुन ज़रा ऐ दिल नशी हम दिल लुटाने आये है उफ़्फ़ तेरी हर अदा पर मर मिटे जो हम सनम आशियाँ ख़्वाबो भरा हम इक बसाने आये है ज़िंदगी की आरज़ू हर ज़ुस्तज़ु में  तुम सनम धड़कनों की धुन जो' तुम वो धुन सुनाने आये है तुम नहीं जो गर सनम मुस्कान रूठी सी लगे आप 'प्रिय' के प्राण हो हम ये बताने आये है #प्रियंका_सिंह

कविता(आशाएं)

#दिनांक -31/8/17 लिए कुछ स्वप्न सजल अंकुर मन में चलें कहीं दूर नितान्त निर्जन वन में हो जहां कलकल नदी का किनारा चमके मद्धम - ढलता सूर्य सितारा वट- शिखर हरित फूल कली क्यारी शोभित मन मोहित ज्यों सखि प्यारी बहे मंद पवन-  सुमन से लहराते केश सांझ लालिमा रंगीत धारण स्वर्ण वेश  स्वेत सारंग में आशाओं के भिन्न रंग भरुँ धरे चंचल हिय इच्छा पवन संग खूब लड़ूँ #प्रियंका_सिंह

कविता (छलावा)

#दिनांक 1/9/17 हाय ये जग निर्मोही कैसा निष्ठुर हर क्षण नोच खसोट को आतुर इंसानो की बस्ती में बसे छल लोभ माया है हर शख़्स यहाँ छलावा है चेहरे पर चेहरा लगाया है कहीं कोई संवेदना हीन है कहीं कोई कपट में लीन है कहीं किसी पर लाखों पहरे है कहीं किसे के चोट बड़े गहरे है आओ तुम भी गौर से देखो यहाँ सब कुछ मात्र दिखावा है इंसानो की काबिल बस्ती में हर शक्स यहाँ छलावा है #प्रियंका_सिंह

ग़ज़ल (सादगी में कमाल लगते हो)

#दिनांक 2/9/17 #पंक्ति_को_लेते_हुए(सादगी में कमाल लगते हो) #ग़ज़ल धूप पीली गुलाल लगते हो रूप ऐसा बवाल लगते हो जिंदगी में भरे उमंग सुनो- मधुर मृदंग ताल लगते हो साज श्रृंगार से परे जानम सादगी में कमाल लगते हो यूँ शरारत भरी निगाहों से- बेजुबां इक सवाल लगते हो आज करता बयां सुनो दिल ये उफ्फ़ तुम बेमिसाल लगते हो #प्रियंका_सिंह

कविता(पल)

#दिनांक- 4/9/17 #विषय     #पल आओ सुनाऊँ .. पल पल की कहानी एक पल में सिमटे  हर पल की जुबानी वादों में लिपटा पल कसम की निशानी अहसासों में सिमटा पल सनम - यादें पुरानी शहनाइयों से सजा पल झूमता हुआ नन्हीं जान को थामे पल चूमता हुआ पल में बिखरती मुस्कान मधुर मीठी सी पल में छिड़े तकरार कुछ-कुछ रूठी सी कहीं पल में मने खुशियों का त्यौहार कहीं पल में पड़े हालातों की मार कभी पल-पल में बसी अनकही बातें रूहानी कहीं अगले पल संदेश वतन के नाम कुर्बानी पल में डूबती लुटिया पल में बेड़ा पार पल में बिखरे कुटिया पल में बसे संसार #प्रियंका_सिंह

दोहा

#दिनांक- 05/09/17 #विधा #दोहा 1-  बालक गीले माटि से, गुरु ऐसे कुम्हार। माटी से मूरत गढ़ें, डालें ज्ञान अपार। 2- जीवन राह कठिन बहुत, चलना हमें सिखाय। गुरु माटी कंचन किए, हम सब शीष नवाय। 3-  मानव मन तम कोठरी,बिन पाए गुरु ज्ञान। गुरुवर गुण की पोटरी, पुंज प्रकाश समान। ©#प्रियंका_सिंह

काव्य गीत(भूल)

#दिनांक- 7/9/17 #विषय #भूल जब हिय अधीर हो जाता है जब मन सहसा मुरझाता है मुख बात पड़ी रह जाती है हर आशा धरी रह जाती है जब तुझसे संगति होती है मेरे हिय -- दुर्गति होती है छिप छिप के अश्रु निकलते है प्रिय भाव शिला भी पिघलते है एक रोष भाव मन में भरता फिर प्रेम उड़ेलूँ मन करता हर बार ये दुविधा मन मे रही क्या मैं कोई अब तेरी नहीं जो मैं तुमको इक भूल कहूँ निज प्राण निकलते कैसे सहूँ लो मान लिया कि भूल हुई तेरे लिए राहों कि धूल हुई हा भूल की सजा मिली मुझको क्या क्या बतलाऊँ मैं तुझको कभी आ बैठ जा पास मेरे की टिकाऊ सिर कंधे पे तेरे ये हिय रह रह अकुलाता है सुन मेरा मन मुरझाता है #प्रियंका_सिंह

#हिंदी गीत (संग तेरे रहेंगे)

#दिनांक 7/9/17  #हिंदी_गीत #आधार_छंद_मनोरम! 2122    2122 आज ये तुम से कहेंगे संग अब तेरे रहेंगे बात ये मन की कही है पास हर पल तू रही है जो कहूँ तो ये सुनो तुम  प्राण सा मुझको चुनो तुम प्रेम से सब दुःख सहेंगे संग अब   तेरे   रहेंगे साज ये श्रृंगार तेरा मुख हँसी उपहार तेरा मोहनी सूरत ये गोरी चाँद आभा में चकोरी चाँदनी सीरत लहेंगे संग अब तेरे रहेंगे  मानता हूँ कठिन राहें थाम मेरी ले तू बाहें प्रेम में संसार सारा स्नेह का भंडार प्यारा सम नदी के हम बहेंगे संग अब तेरे रहेंगे #प्रियंका_सिंह

हिंदी गीत (संग तेरे रहेंगे)

#दिनांक 7/9/17  #हिंदी_गीत #आधार_छंद_मनोरम! 2122    2122 आज ये तुम से कहेंगे संग अब तेरे रहेंगे बात ये मन की कही है पास हर पल तू रही है जो कहूँ तो ये सुनो तुम  प्राण सा मुझको चुनो तुम प्रेम से सब दुःख सहेंगे संग अब   तेरे   रहेंगे साज ये श्रृंगार तेरा मुख हँसी उपहार तेरा मोहनी सूरत ये गोरी चाँद आभा में चकोरी चाँदनी सीरत लहेंगे संग अब तेरे रहेंगे  मानता हूँ कठिन राहें थाम मेरी ले तू बाहें प्रेम में संसार सारा स्नेह का भंडार प्यारा सम नदी के हम बहेंगे संग अब तेरे रहेंगे #प्रियंका_सिंह

#यादों का शहर

#दिनांक -1/10/17 #यादों_का_शहर "वक़्त " - दौड़ती पटरियों सा गुजरता है चलती रेल के बाहर ...... भावुक रफ़्तार से - पीछे छूटता चला जाता है मेरी यादों का शहर......... वही शहर , जहाँ- रिश्तों से सजी इमारतें , इमारतों में समाहित बेपरवाह मुस्कान भरा "घर- आँगन" ममता की छाँव से- मीठी ऊँघ में मग्न "बाग - बगीचे" वही शहर  , जहाँ- कहीं कुछ संबंधों की "चहल-कदमी" कहीं कुछ रिश्तों के नोकझोंक, की शोरगुल से गूँजता "चौक-चौराहा" वहीं शहर , जहाँ परेशानियों से तंग , कभी गोद में मुँह छिपाते कभी कंधे पर सिर टिकाते एक सुकून भरा बसा  "रैन-बसेरा" हर क्षण पटरीनुमा गुज़रते- वक़्त के साथ पीछे छूटता चला जाता है मेरी यादों का शहर......... #प्रियंका_सिंह

#हिंदी काव्य विधा (चौपई)

#दिनांक- 2/10/17 #चौपई #1 भला वही- जो साधे मौन सच को सुनना चाहे कौन निश दिन बढ़ती उनकी शान सदा करें जो सच का मान #2 धोती लाठी जिनका भेष उनकी राह चला ये देश मातृभूमि की हो जयकार सत्य अहिँसा करें पुकार #3 गाँधी शास्त्री जैसे लाल वीर पूत वे बने मिशाल सकल हिंद के है अभिमान सादर नमन - करे सम्मान #प्रियंका_सिंह

#देख लो आज फिर (ग़ज़ल)

#दिनांक-3/10/17 #ग़ज़ल #रदीफ़- आज फिर 212    212    212    212 देख  लो   छा रही है   घटा  आज फिर झूम कर  बह रही है  हवा   आज  फिर सामने  देख  तुमको   खिली  हर  कली दिल  सुनो  बांवरा हो  उठा  आज फिर देखता   जो  रहूँ    चाँद  सा    हुस्न   मैं जल उठा हाय मन का शमा आज  फिर उम्र भर   के  लिए   पास   रहना   सदा सच   कुबूली   गई है  दुआ  आज फिर प्रेम  में  है   पड़ा   देख  'प्रिय'  जान  यूँ हुक्म दो बस  निभाऊं वफ़ा  आज फिर #प्रियंका_सिंह

#ग़ज़ल(खाई कसम तुझको भुलाते देखा है )

सादर प्रणाम #दिनांक-4/10/7 #ग़ज़ल 2122    2122   2122  212 इश्क़ में खाई कसम तुझको भुलाते देखा' है प्यार मेरा भूल कर जो दिल लगाते देखा' है क्या तरस आया नहीं मुझ पर तुझे ए दिलनशीं तोड़ कर मेरा भरोसा मुस्कुराते देखा है सोच तो इक पल ठहर कर बीतता इस दिल पे क्या ग़ैर के काँधे तुझे जो सिर टिकाते देखा है था गुलिस्तां सा सजाया ख़्वाब का अपना जहां छोड़ सब तुमको नई दुनिया बसाते देखा है प्राण से भी 'प्रिय' रही वो मैं न ये समझा सका अपनी आँखों से उसे अब दूर जाते देखा है #प्रियंका_सिंह

#छंदमुक्त(हुंकार)

#छंदमुक्त #हुंकार जब शत्रुओं के शीश को दिया धड़ से उतार गूँजा नभ में बिगुल सा विजय की हुंकार दिया वीरता का परिचय किया वार प्रति वार रिस कर बहता रहा लहू गोलियों की रुकी न धार फहराया उच्च शीर्ष पर राष्ट्रीय ध्वज सम्मान हर एक अमर जवान बना गौरवान्वित देशाभिमान आज उन वीर शहीदों के स्मृति चिन्ह भी फूँकते उनमे प्राण संवेदनहीनता  संग लिए दिखते जो निष्प्राण गूँजे फिर से वो बिगुल भले देशप्रेम की अलख जगाने को स्मृति स्थल - अमर ज्योत जले #प्रियंका_सिंह

#मुक्तक(सनम जो मिले हो)

#दिनांक-5/10/17 #मुक्तक 122       122         122        122 सनम जो मिले हो कसम क्या कहें  हम बिना तेरे  अब इस  जनम  ना  रहें  हम वफ़ाए  निभाऊँ   तुझे  कर    मैं   वादा कि आओ चलें  संग  मिलकर  बहें हम #प्रियंका_सिंह

#मुक्तक(ज्ञान अंकुर खिलाएंगे)

#दिनांक- 7/10/17 हम बाल बालिका भाव पथिक  सर्व- स्नेह अंकुर खिलाएंगे अज्ञान तिमिर कर दूर मन में अनुपम ज्ञान ज्योति जलाएंगे हिय स्नेह संवेदना संचार हो  छल कपट दंभ उपचार हो - मानवता- करुणा की पुंज  हम स्मरण सभी को दिलाएंगे #प्रियंका_सिंह

#शुद्घ_हिंदी_गीत_(ऋतु प्रेम आई है)

#दिनांक 8/9/17 #गीत #आधार_छंद_विजात 1222         1222 सुनो ऋतु प्रेम आई है घटा भी संग छाई है कहीं फिर कूकती कोयल कहीं फिर गूँजती पायल सुना है गीत नदियों का मिला अब मीत सदियों का हृदय में तू समाई है सुनो ऋतु प्रेम आई है खिलें हैं आज वन उपवन हुआ है देख चंचल मन दिखी ये साँझ फुलवारी खिली हर फूल की क्यारी तुझे पाऊँ दुहाई है सुनो ऋतु प्रेम आई है बड़ी ये रात है प्यारी मगन सुन रागिनी सारी कहो ये बात है कैसी लगे अनुराग के जैसी दशा अपनी दिखाई है सुनो ऋतु प्रेम आई है #प्रियंका_सिंह

#ग़ज़ल (नज़र नहीं आता)

#दिनांक- 9/9/17 #गज़ल 2122  1212   22 पल सुहाना नज़र नहीं आता ये दीवाना नज़र नहीं आता जो लगे जान तुम खफ़ा से हो तो सताना नज़र नहीं आता ये उदासी जो नागवारा है क्या मनाना नज़र नहीं आता हाल दिल का सुनो कहूँ तुमसे कुछ छिपाना नज़र नहीं आता 'प्रिय' जमाने की बात समझाए पर ठिकाना नज़र नहीं आता #प्रियंका_सिंह

#नारी_शिक्षा(ताटंक छंद)

#दिनांक - १३-०९-२०१७ #ताटंक_छंद 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 हर क्षेत्र में सबल है नारी, सबको बात बतानी है। सिर आश्रय पाकर शिक्षा का, अब पहचान बनानी है। अबकी जो कदम बढाया है, इसे न हम रुकने देंगे। सफलता शीश चमकेगी अब, मान नहीं घटने देंगे। आज हर दिन संख्या घट रही, हमें बेटी बचाना है। जग में अपना नाम करें वो, उनको खूब पढ़ाना है। मानसिक जड़ता को तोड़ कर, सुन जो खूब पढ़ेगी तू। इस पुरुषाधिन समाज मे भी, बिटिया खूब बढ़ेगी तू। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 #प्रियंका_सिंह

#कविता_हिंदी_दशा_दिशा

#दिनांक- 14/9/17 #हिंदी_दशा_दिशा अपनी 'राजभाषा' हिंदी है कई लोगो को ये ज्ञान नहीं हाय मातृभाषा हिंदी को निज लोगो में ही मान नहीं व्यवहारिक भाषा हिंदी से सब समझे निज सम्मान नहीं इससे अति क्या दुर्गति होगी हिंद में हिंदी अभिमान नहीं आंग्ल भाषा की गरिमा को यहाँ हर लोग बचाये रखते है बस निज भाषा के प्रयोग में मन और मुख दबाये रखते हैं मन प्रफुल्लित होता आज ये मन अति हर्षित होता आज यदि दिन हिंदी उत्सव होता हिंदी वर्ग प्रधान न होती न ही प्रयोग औसत होता साहित्य रचयिता की कर्मठता व्यर्थ दिखाई पड़ती है जब अपनो के ही मध्य ये हिंदी घुट घुट नित नित मरती है चलो आज हम इक दीप जलाये हिंदी की उन्नति स्वर गीत गाये सम्मान हम ही से मिलना है जब आओ सब मिलकर मान दिलाये #प्रियंका_सिंह

#ग़ज़ल_हिंदी_शौर्य

#दिनांक- 14/9/17 #विषय  #हिंदी                 #ग़ज़ल 2122       2122        2122         212 ये धरा   जननी यही है   भारती ये    शान  है हिंद  हिंदी  वंदना सुन   आरती ये     मान  है वीर गाथा  से सजी   साहित्य यह   जान  लो रूप शब्दों का   नहीं ये   देश की  पहचान है है यही तुलसी की' वाणी है निराला ज्ञान स्वर वर्ग की बोली नहीं ये    सर्व का  अभिमान है युग युगों से चल रही   संघर्ष ये  अस्तित्व की आज भी 'कई जान इसकी प्राण से अंजान है खेलते कुछ लोग  भाषा नाम पर   क्यों पैतरे ध्यान हिंदी ही सदा मन - भाव का सम्मान है #प्रियंका_सिंह

#अपने_मुँह_मिया_मिट्ठू#हाइकू

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#विधा_हाइकू 1       ममतामयी        यह दृढ़निश्चयी         नाम प्रियंका 2     नाम है प्रिया        बहुरानी मुखिया          नन्ही दुनिया 3       स्यामल तन       केश घने उपवन          चंचल मन 4     मुखमण्डल      हँसी से गाल लाल         हिय निहाल 5       मन हर्षित      क्रोध मन बाधित         मैं मर्यादित ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह 10/7/17

#मेघ_हाइकू

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दिनांक- ८/७/२०१७ 1        मेघ बरस        घन वन सावन          ऋतू सरस 2      मास श्रावण        हर्षित तन मन          शिव पूजन 3      वर्षा बहार       हरित उपवन         मंगलाचार 4       घटाएं घन        बरखा रिमझिम          मन प्रसन्न 5       मंद हवाएं       बूंद बरखा संग          हिय हर्षाए 6       बहे बयार        मन हर्ष अपार          नभ निहार 7      बूंद पावन       हरित जल मन          नीर गगन  ✍स्वरचित #प्रियंका_सिंह

#ताकतवर_पुरुष

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😣😣😣😣😣😣😣😣😣😣😣 एक अँधेरे से निकलता विशालकाय शरीर, देखो इसे..और पहचानो ,  ये मैं हूँ.... मैं- एक पुरुष,   एक ताकतवर पुरुष जिसके अहम के पंजों तले निर्जीव समुदाय दबी है.... "आओ ..तुम्हारी औकात दिखाऊं           ...तुम्हें तुम्हारी जात बताऊं" कर्णपट की तलछटी में बात डाल लो मेरे हर हुक्म पर अपनी गांठ बांध लो तुम्हें जीव होकर भी है    जीना नहीं शहद रखा हो जो तेरे आगे बातों का दूर से बस देख ...सुन इसे पीना नहीं स्त्री हो तुम...अपनी नहीं, मेरी बनाई हदो में रहो तेरा स्वर्ग मेरे तलवे के नीचे बस पड़ी पदों में रहो सुन......ना तेरा कोई मान है न तेरा कोई सम्मान मेरे उपभोग की तू वस्तु है .....घर में पड़ी समान चल  अब उठ  अपनी इच्छाओं का  तू गला घोंट तू स्त्री है  तेरा सौभाग्य  मेरे हाथों मिली हर चोट समझ लो कि - तुम्हारा अस्तित्व केवल मशीनी है काम तुम्हारा बिन थके-रुके अनवरत खटते जाना गर कहीं जो चूक गयी - तू कुलटा और कमिनी है हुँह........ जात से बेटी- ना बाप की ,न सासरे की न कोई ठौर  , ना...

#अग्निफेरा

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विषय - अग्नि फेरा तिथि -१९/६/२०१७ वार -सोमवार 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 वर-वधू-विवाह का आरम्भ -अग्नि फेरा नव संसार व जीवन का प्रारंभ -अग्नि फेरा कहीं ख़ुशीयों का व्योम -अग्नि फेरा कहीं सपनो का होमं -अग्नि फेरा कहीं अपनों से जुदाई -अग्नि फेरा कहीं अपनों बीच पराई -अग्नि फेरा कहीं सर्वस्व लूटा,बेटी की बिदाई- अग्नि फेरा कहीं बरसते ताने,थमने की दुहाई- अग्नि फेरा         ये अग्निफेरा हैं -अंतहीन अपेक्षित आशाओं का         ये अग्निफेरा हैं - निष्प्राण होती अभिलाषाओं का         ये अग्निफेरा हैं- प्रतिष्ठाओं की जलती धूप का         ये अग्निफेरा हैं - बलिदानों की कड़वे घूँट का        ये अग्निफेरा हैं -समाज से जुड़े हर कायदे का        ये अग्निफेरा हैं-प्रिय पति से जुड़े हर दायरे का        ये अग्निफेरा हैं- आत्म अधिकारों के हनन का        ये अग्निफेरा हैं- पुरुषाधिन जिजीविषा के मनन का 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥?...

#कलमकार

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छिटके अल्फ़ाज़ों को चुन देते मूक भावो को आकार धन्य है तुम्हारी कलम, धन्य हो तुम कलमकार अनगढ़ सोच की मूरत को समझ की स्याही से देते रुप साकार धन्य है तुम्हारी कलम, धन्य हो तुम कलमकार तुम्हारी कलम की छाया में होता मात्राओं का भी उद्धार धन्य है तुम्हारी कलम, धन्य हो तुम कलमकार तुम्हारी प्रतिभा की ये गाथा अक्षर या कोई शब्द नहीं बेकार धन्य है तुम्हारी कलम, धन्य हो तुम कलमकार तुम लिखो..बिना डरे बिना रुके उठाओ कलम से हर विषयों के प्रकार धन्य है तुम्हारी कलम, धन्य हो तुम कलमकार तुम समाज का दर्पण हो,तुम्हे निहार मानवीयता लेती अपना रूप निखार धन्य है तुम्हारी कलम धन्य हो तुम कलमकार

#स्त्री

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#काफ़िया-आन #रदीफ़- नहीं कोई तिथि-१४जून२०१७ वार-बुधवार ********************** स्त्री भी इंसान है, मूरत -बेजान नहीं कोई घर में पड़ी बेकार सी -सामान नहीं कोई सभ्यता की फटी चादर मे बुद्धिजीव छिपे है यहाँ परिस्थितियों से -अंजान नहीं कोई स्त्री की गरिमा ना समझे........ मेरी समझ से इतना -नादान नहीं कोई सदियों से अस्तित्व के संघर्ष में मिला इसे क्यों -सम्मान नहीं कोई जीवन भर  त्याग के उपरान्त भी इसे हुआ अभी -अभिमान नहीं कोई **************************** नाम -प्रियंका सिंह शहर-रांची

#अधूरी_बातें

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तिथि-१६/६/२०१७ वार- शुक्रवार 🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎 जाने क्यों यूँ बात बात पर, तुम्हारी हर बेफ़िक्री को सह गई यक़ीनन बीच हमारे कुछ अधूरी बातें कहने-सुनने को रह गई...... वो बातें झूठे वादें थे अमूमन उन वादों में मैं बह गई यक़ीनन बीच हमारे कुछ अधूरी बातें कहने- सुनने को रह गई...... तुम्हारी हर टोक चोट देती थी उन मूक चोटों को क्यों सह गई यक़ीनन बीच हमारे कुछ अधूरी बातें कहने- सुनने को रह गई...... इक रोज़ नहीं हर रोज़ दिए तेरे ताने सुन मेरी हिम्मत ढह गई यक़ीनन बीच हमारे कुछ अधूरी बातें कहने-सुनने को रह गई..... मन में दबी कई बातें थी यूँ बातों बातों में मैं कुछ कह गई फिर भी बीच हमारे कुछ अधूरी बातें कहने-सुनने को रह गई...... ?🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎🎎 नाम -प्रियंका सिंह शहर -रांची

#मोबाइल

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तिथि-15/6/2017 वार-गुरुवार सुनो सखी ये मेरी कहानी मेरी कहानी कुछ मेरी जुबानी माँ कहती खीज़ बात बात पर मोबाईल चलाने में मैं हूँ नानी सारा दिन मैं यही बिताऊँ दिन भर सिर्फ चैट में बतिआउँ है मोबाइल की जरुरत कैसे जताऊं माँ को ये चीजें कैसे बताऊँ.. इसी से मेरी लेखनी यही मेरी किताब इसी में लेख ,मैं लगाती यहीं  हिसाब पल भर में यहाँ जानकारियां पाऊँ अब स्मार्टनेस का मुझे मिला ख़िताब अरे मोरी मैया .... तुझसे कैसे बताऊँ सच पूछ तो कुछ कह न पाऊँ सारा काम मेरा इसी से होता कैसे तुझको ये समझाऊं बस बार बार ये कह के मानउँ रूठ ना तू तुझे कैसे रिझाऊँ इतना समझ ले घर बैठे ही सारा काम एक चुटकी में झटपट मैं यही निपटाऊँ

#काफ़िया

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अपनी ओझल पहचान है प्यारे उज्जवल अस्तित्व का अरमान है प्यारे.. मार्ग में अनेक बाधाएं है- इस बात से मन अंजान है प्यारे... जीवन की इस भाग दौड़ में अब तक ज़हन नादान है प्यारे... कोशिशों के रेतीले टीलें ही सही- उन पर मुझे अभिमान है प्यारे... कठिनाइयों से लड़ने में ही- मेरा आत्मसम्मान है प्यारे.... अभिमान से दूर, मन की कोने गह्वर में कुछ ऐसा है जो बेजान है प्यारे.. चेहरे की हरियाली के भीतर मन में कुछ सुनसान, बियाबान है प्यारे... शायद ये असफलताओं के थपेड़े है जिससे हिय परेशान है प्यारे.... निराश मन की भूमि पर मानो बन रहा दिन दिन उम्मीदों का शमशान है प्यारे.... ©प्रियंका सिंह

#ममता_ममत्व_की

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देखो कैसेेे - बोलती ये तस्वीर राज़ ममत्व का कैसे - खोलती ये तस्वीर ... इन्ही हाथों रचा - जीवन का ये अद्भुत सार बेमोल,अमूल्य है आभा- कौन उतारे इसका भार... नो महीने का गर्भ धारण कर ' संपूर्ण मानवता को - आकार दिया है इसने, दुखद विडम्बना कहु यही - कोई एक ना दीखता ऐसा उचित सम्मान दिया हो जिसने... ©प्रियंका सिंह

#निर्मम_संवेदनाएं

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निर्ममता की हर श्रेणी वो - पार कर गया..... अस्तित्व पर चोट क्या कम थी - जो माँसल शरीर की यौनि पर भी वार कर गया .... हर बार देह सिहर सी जाती जब वो क्षण- स्मरण हो आती मानवता की माया को वो मानव बेकार कर गया..... हर स्त्री की गरिमा को वो तार -तार कर गया..... हाय वो निर्मम- निर्ममता की हर श्रेणी पार कर गया.....

#सुनो_गुलाब

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सुनो गुलाब.... तुम मेरी प्रिय हो, इसीलिए तुमसे जुड़ी कुछेक मानसिकता खलती है,  हिय को... नहीं मानती, तुम्हारी उस वज़ूद को- जिससे केवल नायिकाएं ही सवांरती रहे ख़ुद को.. नहीं मानती, तुमसे जुड़े उस ख़्वाब को- जिसमें तुम केवल भेंट स्वरुप इंगित होती हो किसी प्रेमी,नायिका ,किसी नवाब को.. मेरे लिए तुम केवल -मात्र गुलाब का फूल नहीं, तुम सर्वदा पूज्य हो... चाहें पूण्य आत्माओं ,वीर-वीरांगनाओं के चरणों से - कुचली हुई ,  मानो धूल सही.... मुझे तुमसे जुड़ा केवल प्रेम प्रसंग मान्य नहीं, समाज से प्रसारित तुम्हारे लिए - कामुकता का सम्मान भी ध्यान नहीं.. मेरे लिए ...प्रिय तुम केवल कोमल पुष्प हो,कोई प्रतीकात्मक भोग्य नहीं हाँ कुछ मानसिकताएं शुष्क है, जिनके लिए तुम पूजनीय, पूजन के योग्य नहीं... ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

#यादों_की_रेलगाड़ी

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यादों की इस रेलगाड़ी में, डिब्बे सारे सपने हैं ऐसे सपने जिनके मूल केंद्र में, मेरे सारे अपने हैं......... जो रुंठती मैं कभी बात बात पर , हर बार ठग - मानतीं वो, खाने का हर एक निवाला- अपने हाथों - खिलातीं वो...... माँ की बोली, माँ का दिलाशा अब याद जो आए,मन होय रुआंसा... बाबा की सख़्ती, भाई की मस्ती...... लड़ाई, झगड़ों संग- मुँह फुलाना, उन अठखेलियों संग-ढेरों बहाना.... अब लगता है वाकई- मैं बड़ी हो गई माँ के पद पर आज- मैं भी खड़ी हो गई... कसमें-वादें ,रिश्तें-नाते जिम्मेदारियों का जैसे मिला खज़ाना...... अब नन्ही सी मुझमे- मुस्कान नहीं खिलती अब अल्हड़ सी मेरी- पहचान नहीं मिलती बाबा की टोक- माँ की गोद- भाई का सताना, सच पूछों तो सब कुछ -लगे बीता जमाना... मेरी पूँजी-खुशियों की कुंजी - मेरे सारे अपने है, यादों की इस रेलगाड़ी में, डिब्बे सारे सपने हैं......... ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

#सोच_सकारात्मक

तनिक धैर्य रख ,ना हिम्मत तु यूँ हार ... आने वाला वक़्त - तेरा है.... जीवन के हर चोटिल थपेड़ो पर, करना है तुझे - एक अचूक वार थोड़ी हिम्मत , थोड़ी शक्ति थोड़े मनोबल  की कतार..... फिर देखूंगी कैसे नहीं होता हर एक कठिनाइयों का संहार .... ©प्रियंका सिंह

#राधे_कृष्णा

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★★★★★★★★★■■■■■■■■★★★★★ सुरत मोहक - छवि निराली मानो मन के अंध कूप में, भावमय फैली - ज्योति की लाली... साँवरे के रंग में - जैसी रंगी मीरा वैसी रंग जाऊ - ले नाम मैं तेरा... ह्रदय में स्नेह का - भण्डार है जितना सब तुझ पर - देऊ वार मैं कृष्णा... मोहनी सूरत - बाल छवि तेरी सब गोपियन की- मति गई फेरी... मोहक मृदुल - फुहार में राधे प्रेम वीणा के - हर तार में राधे...... सब सखियों में - राधा प्यारी कोमल आभा - अति दुलारी.... हाय दोनों की - संग मूर्ति न्यारी तुम्हरे प्रति यह प्रेम - सब भार से भारी... इस बेसुध मन की बेकल तृष्णा ....जो जपत जाऊ नाम .... ......राधे कृष्णा - राधे कृष्णा..... ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆●●●●◆●◆●

#जिंदादिली

-------------------------------------------------- #जिंदादिली_से_गले_मिले ======================== सुना है लौट आए हो तुम यूँ बिन बतायें,कहाँ हुऐ थे गुम? मेरी कोई बात गर थी खली तो कह दिया होता,तूने छोड़ी क्यों हमारे बचपन की गली? चलो छोड़ो.... जो अब तुम वापस आए हो, तो बताओ.... मेरे लिए शहर से क्या लाए हो,? याद है.... हम कैसे साथ में पढ़ते थे, एक साइकल की सवारी को हमदोनो आपस में ही लड़ते थे, याद है... वो गिल्ली-डंडा, नहर की पानी से गीली शर्ट जिसे सुखाते थे हम हर बार बना कर झंडा.. तू क्या गया बंद हो गए सारे अड्डे लगाते थे जो हम पीपल के तले कहने को ... हम इतने दिनों बाद मिलें अब भी मानो अधूरे से है- हमारी सारी तकरारों के सिलसिलें चल छोड़... भूल कर सारे नोंक-झोंक भूल पुराने शिकवें-गिलें आओ फिर से एक बार जिंदादिली से गले मिलें... ------------------------------------------------------ नाम- प्रियंका सिंह

#हम_भी_बच्चे_बन_जाए

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मंद मंद बयार में झूमती कैसे, देखो ये अमिया की डाली... उछलूँ, कूदूं सेंध लगाऊं पर हर बार हाथ रह जातें खाली दुरी इतनी के बस देख देख मन ललचाये.. इन डालियों की भी खूब शैतानी तनिक एक आम भी ना टपकाए.. मन में ही खुश हो लेती हूं सोच- पके आमों की रस भरी थाली.. सचमुच फलों के इस राजा की है बात ही कुछ निराली.. जी में आता है - ताऊ के बगीचे के आम चुरा कर सारे सरपट दौड़ लगाये.... वयस्कता की चादर छोड़ फिर से बच्चों की तरह , हम भी बच्चे बन जाएं.... ©प्रियंका सिंह फोटो: साभार गूगल

#बूढी_हंसी

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#बूढी_हंसी तेरी बूढी हंसी में ,अब वो बात नहीं रही.. बयां तो कर मन की- चाहे हो वो ,दो टूक अल्फ़ाज़ ही सही.. खामोशियों के इस बियाबान में - तू घूम क्यों रहीं... व्यथाओँ को बता कर,पल भर को- खुल के झूम तो सही.. भावी इंसानो की सभा में भावनाओ की , ऐसी दुर्गति,कोई कैसे सहे.. ये कौन किससे कहे कि- हम इंसानों में , अब इंसानी जज़्बात नहीं रहें.. ©प्रियंका सिंह फ़ोटो: साभार गूगल

#दही_चीनी

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तेरा ख्याल आता है- तो याद आती है माँ... तुझसे जुड़ी हर याद वो भीनी भीनी याद आती है - तेरी हर बात याद आती है -तेरी हर  डांट तेरा वो मुस्कुराकर मेरा माथा सहलाना कभी मेरी ज़िद को अपनी बातों से बहलाना याद आती है माँ तेरी हर सीख तेरी हर बोली याद आती हैं तेरे पैरों पर डाल गुलाल , तेरे संग बीती हर एक होली... याद आती है माँ मेरी हर एक शरारत पर तेरा वो झूठ का गुस्सा, उस गुस्से से मुझे ठगना याद आती है माँ..मेरी पढाई में , तेरा यूँ देर रात तक जगना.. याद आती है तूझसे जुड़ी, हर बात वो भीनी भीनी तेरी हाथों की बनी , मीठी अमचूर की गोली तेरे हाथो से खिलाई वो दही चीनी... ©प्रियंका सिंह साभार गूगल

#एक_बयानी_निर्भया_की_जुबानी

#एक_बयानी_निर्भया_की_जुबानी आखिर साढ़े चार साल बाद मुझे इंसाफ मिल ही गया माँ-पापा चेहरे पर संतोष का एक शून्य भाव खिल ही गया याद है मुझे ..... उस दिन जो हुआ वो सिर्फ अपराध नहीं था इंसान की शक्ल लिए,खूंखार पशु-सा, बस के उस डिब्बे में.. जघन्य से जघन्यतम श्रेणी का कृत्य कहीं था हर एक नोच, खसोट के बाद, बात जब मुझे बीच सड़क पर फेकने की आई .. 'अब छुटूंगी इस चंगुल से -' इस आश में मेरी आह भर आई ... कहने को उस चौराहे पर सब खड़े थे, पर कोई न था ऐसा जो इंसानियत के नाम ही सही अपना कह सके.. किसी के दुप्पटे या चादर की इतनी भी चौड़ाई ना थी , जो मेरा नग्न शरीर ढंक सके... कोई ना आया पास उठाने, एक मदद का हाथ बढ़ाने.. उस लोहे के छड़ से न जितने गहरे घाव मिले थे , उससे भी अधिक कष्टदायक चौराहे खड़े लोगो के भाव मिले थे.. वो तकलीफें ऐसी थी कि किसी से कुछ कह ना पाई पीड़ाओं से लड़ते लड़ते,मैं कष्टों को सह ना पाई... आखिर 29 की उस रात को मैंने दम तोड़ दिया... निर्दयी इस इंसानो की बस्ती से मैंने अपना मुह मोड़ लिया... साढ़े चार साल की इस न्यायिक अवधि में एक बार नही हर रोज़ मरी थी... शायद अब उन स...

#खिलौनें_वाली_बूढ़ी_काकी

#खिलौनें_वाली_बूढ़ी_काकी कौन जाने,और कितना बल शेष है ? बूढ़ी हड्डियों का ढांचा है या बस बूढ़ापे का कोई छद्मवेश है... कौन जाने,कहाँ से संजोया है- इतनी आत्मशक्ति... जीवन के इस अंतिम चरण में, ओ..खिलौने वाली बूढ़ी काकी तुम्हारी ये बूढ़ी हड्डियां- क्या नहीं थकती?... कभी सोचती हूँ.. होगी तुम्हारी कोई मज़बूरी शायद इसीलिए चैन और आराम से तुम्हारी इतनी है दुरी .... बताओ जरा...कहाँ से लाती हो तुम इतनी ऊर्जा?.. क्या घर का भार उठाने वाला, कोई नहीं है दूजा? "ओ रे बोटियां... ऊपरवाले ने ही सुनी कर दी मेरी पूरी बगीया.... बस मैं ही हूँ मेरी, और कोई नहीं, जिससे कर सकूँ मन की दो बतिया.. मान ले तो ये खिलौने बेचना ही मेरी जीविका है मान ले तो ये खिलौने बेज़ान ही मेरी सखियाँ है.." ©प्रियंका सिंह

#निराला_की_कविता_में_वो_तोड़ती_पत्थर_मजदुर_दिवस

#मजदुर_दिवस_ #दिवस_बेबसी_का #निराला_की_कविता_में_वो_तोड़ती_पत्थर चलो मनाए .... श्रमजीवियों के लिए, 'मजदूर दिवस' जो आज भी हैं कई, किस्तों में बेबस कोई सिर ऊपर छत पाने को अपना खून जलाता है... कोई 'दो साँझ की रोटी' खाने को क्षमता से अतिवजनी ठेला,रिक्शा चलाता है... कहीं श्रमिक महिलाओं से होता भेदभाव है... कहीं एक परिवार सड़को के किनारे, मज़बूरी की इमारतों से, बसाता अपना गांव है... कहीं लाचारी की घटती ही नहीं गहराई है कहीं ताक पर रखी ..बच्चों की पढाई है हर कोई अपनी जिजीविषा के लिए, श्रम और मजदूरी को तत्पर है.. शायद इसलिये... "निराला" की कविता में, इलाहाबाद के पथ पर "वो तोड़ती पत्थर" है.. हर पक्ष का दूसरा पहलू क्यों देता नहीं हमें दिखाई है.. चलो हर बार की तरह दिखावे के इस दिन की तुम्हे बधाई है... ©प्रियंका सिंह

#कुछ_ना_होगा_इस_देश_का

#कुछ_ना_होगा_इस_देश_का चूहे बिल्ली की दौड़ लगी है उफ़ इस राजनीती में , देखो कैसी होड़ मची है कहीं किसानों की पोल खुल रही कहीं जवानों के - जीवन का कोई मोल ही नहीं.... चल रहे है सभी भ्रस्टाचार की लकुटिया टेक वो बात और है कि सारे नेता सारी जिम्मेदारियों को, बस रहे एक दूसरेे पर फेंक.. कुछ ना होगा इस देश का जाने कब असलियत बाहर आएगी देश के शुभचिंतको के नकली वेश का... ©प्रियंका सिंह

#कैसे_करूँ_तुम्हारी_शहादत_को_सलाम

तुम्हारी शहादत की झांकियों के बढ़ते काफिलों के पीछे छूट गई इक नन्ही सी किलकारी... हो गई खाली .. तुम्हारे कपड़ो से भरी पड़ी- हम दोनों की अलमारी.... अब ना आएंगी , तुम्हारे नाम की कोई चिट्टी.. सारे सपने ख़ाक हो गए बस पास बची .. तुम्हारे अर्थी की आखिरीे स्पर्श वाली घर आंगन की मिट्टी... छुट्टी की मंजूर अर्जियों के साथ अब कोई ना घर को आएगा प्यार-तकरार भरी मुस्कान से अब कोई ना मन बहलाएगा.. अब कौन लाएगा .. अपनी बिटिया के लिए खिलौने अब कौन बतियायेगा... बैठ अम्मा के सिरहाने सुनी हो गई ... हाय मेरी कलाई तुम्हे अंतिम विदाई देते... हाय सबकी आँखें पथराई मैं मानती हूं .... तुम शहीद होकर ,अमर हुए.... पर सच्चाई तो ये भी है ना तुम हमारे पास,हमारे बीच नहीं रहे... ©प्रियंका सिंह

#बावड़ी_अँखियाँ_टकटकी_लगाऐ

 #बावड़ी_अँखियाँ_टकटकी_लगाऐ हर बार उस चौखट से मायुँसी लिए साथ लौट आती हूँ... एक तेरे नाम की ख़बर हैं कि- आती ही नहीं.... तेरे आने की खबर कागा मुझे बताएं , हर बार ये जिम्मेदारी उसे सौप आती हूँ... फिर भी तेरे आश में टकटकी लगाए , ये बावड़ी अँखियाँ है कि निंदिया लोक में जाती ही नहीं..... ©प्रियंका सिंह

#विहग_वंदना

प्रातः की मनोहारी शीतल बेला में देखो खिल उठा हैं ये सूरज अदना... कहीं पुष्पगंधों से मदमस्त हवाएं तो कहीं गुंजित होती विहग वंदना... ©प्रियंका सिंह

#मनःस्थिति

ना जाने कौन सी स्थिति में हैं मेरी मनःस्थिति.... हर क्षण एक अजीब सी उकलाहट है, आप में ही अज्ञात सी बौकलाहट है.. जाने क्यों..? हर बार उस अंजान से मोड़ पर खुद को खड़ा पाती हूँ जहाँ से बस विषाद की गठरी का बोझ हर बार अपने कंधे पर ढोये लाती हूँ  उस अज्ञात वन का वो छोर.. जहाँ से मुझे आगे बढ़ना है अवचेतन मन के रेतीले टीले की आखिरी ऊँचाई तक मुझे बेतहाशा चढ़ना हैं कुछ शेष बची हुई आशाएं है आशाओं के अवशेष रूप में कुछ इच्छाएं है जानती हूं इतना की - इन इच्छाओं की पूर्ति मार्ग पर , आगे असंख्य सी बाधाएं है.... कभी परिस्थितियों के विपरीत, भीतर ज़ोश- आक्रोश पाती हूँ कभी जिम्मेदारियों से दुर्बल, निर्जीव उम्मीदों के गर्त में - खुद को समाएं जाती हूँ समझ नहीं पाती आखिर क्या है... मेरे जीवन की अंतिम परिणति सच... ना जाने कौन सी स्थिति में हैं मेरी मन की मनःस्थिति....

#बंद_भी_करो_ये_पत्थरों_की_बाजी

#बंद_भी_करो_ये_पत्थरों_की_बाजी 'अपने ही अपनों को तोड़ेंगे' ये बातें हज़म नही होती.. हम भी उखाड़ सकते हैं , तुम्हारी जंघाओं और भुजाओं को जो अगर हमे भारत माँ की कसम नही होती.. बंद भी करो ये पत्थरों की बाजी ये वेतन तुम्हारे नाम भी हैं साथी.. अरे हमे तो साथ मिलकर - दुश्मनो से लोहा लेना हैं नाकि अपने ही सैन्यदल को - रणभूमि में धोखा देना हैं चंद पैसो की बात है प्यारे, इस काले से धन का क्या करोगे? अपने देश से विद्रोह का शिरोनाम , लेकर ही क्या तुम मरोगे? अरे..... दुश्मनो की गोलियां फिर भी हमे बर्दाश्त है पर दुश्मनो की शक्लो में हम तुम्हे अपने आगे पाएंगे इस सोंच से चोटिल होते हमारे अपने ही जज़्बात है यारो.... हम तुम्हारी ही सुरक्षा में तत्पर सेना है एक तुम्हारी सलामती के लिए ही तो  हमें आखिरी सांस तक जीना हैं...... ©प्रियंका सिंह

#और_कितनी_शिकायतें_हैं_तुम्हे_मुझसे

शिकायतें.... और कितनी हैं ? तुम्हे मुझसे शिकायतें.. अगर कुछ है तो बता दो, कुछ बेढंगा सा जो मुझमें है वो आज ही तुम जता दो... रोज़ की कुढ़न का करना क्या, रोज़ यूँ किस्तो में लड़ना क्या.. रोज़ की किचकिच,रोज़ की झिकझिक आज गिना ही दो मेरी, रोज़ की खिटपिट हाँ,हर बात पे जिद्द करती हूँ  हाँ,हर बात पे खीझ पड़ती हूँ वक्त बे-वक्त...I हाँ,बस तुमसे ही भिड़ पड़ती हूँ और कुछ ...देख लो,सोच लो कुछ रह ना जाऐ रुक जाओ,जरा संभाल लूँ खुद को तकलीफें आँखों से मेरे बह ना जाऐं... इक बात बताओगे? और कितना बेरुखापन दिखाओगे, और कितना खुद से दूर भागाओगे.. जानती थी वक्त बदलेगा  पर इतनी जल्दी,ये उम्मीद ना थी, एक मेरे तुम ही अपने मैं कोई हज़ारों की मुरीद ना थी... बचत चाहती थी लम्हो का  हर बात के लिए फकत कुछ परवाह लम्हे हमेशा हमेशा के साथ के लिए

#तुम_किसी _भीड़_का_हिस्सा_नहीं

तुम ख़ास हो, किसी भीड़ का हिस्सा नहीं... अपने आप में एक पूरी किताब हो, किसी अधूरी सी कहानी का, कोई अधूरा सा किस्सा नहीं.. ©प्रियंका सिंह

#मोह_की_लत_में_व्याकुल_लम्हें

तुम्हे मोहलत चाहिए? तो ले लो .... पर इतनी भी मत लेना क़ि तुम्हारे 'मोह की लत' में व्याकुल लम्हो को-  तुम खो दो.....

#भू-तल_की_सियाह_गर्तों_में

तुमसे दूर कहाँ मैं जाउंगी । वादा किया है ... ता-उम्र साथ मैं निभाऊंगी ।। तुम भी सुन लो, मुझसे बच न पाओगे । भू-तल की सियाह गर्तों में भी, तुम मुझे.....  अपने साथ ही पाओगे ।।                    ©प्रियंका सिंह

#ब्लैक_एंड_व्हाइट_जिंदगी

हजारों रंगीन झमेलों के बीच... "ब्लैक एंड व्हाइट"  जिंदगी ज्यादा अच्छी हैं.... ना कोइ रंग,ना कोई संग ना कोई जिद्द , ना किसी से उम्मीद बस आपने आप में- "खुद से दोस्ती " ज्यादा सच्ची हैं... ©प्रियंका सिंह

#अमिया_की_डाली...

गर्माहट भरी हवाओं में, झूमती वो अमिया की डाली... पत्तियों की सरसराहट हो या, डालियों की चरमराहट, लगे जैसे साथ मिल सारे- बजा रहे हो ताली..... इठलाती,बलखाती सौंधी-सी खुशबू पीली पीली मंजरी की.. जैसे खरी हो कोई बाला- पीली चुनड़ी ओढ़े सुन्दरी सी... उफ्फ ये चटपटा खट्टापन नन्ही नन्ही कैरी की..... याद आया बचपन, पेड़ों से टपकते आमों के लिये, आंधी-बारिशों के बीच - कभी मैं भी बागो में दौड़ी थी... ©प्रियंका सिंह

#चटकती_पीली_सरसों_के_महीन_दाने,

चूल्हे की गर्म आंच पर जलती तप्ती कड़ाही, तप्ती हूँ मैं भी प्रत्येक क्षण- जब भी स्मरण हो आती हैं जलती चुभती तुम्हारी हर एक बातें... चटकती जैसे गर्म तेल में पीली सरसों के महीन दाने, चटके हैं वैसे मेरे हरेक सपनें भी- जिनकी आवाज़ को हर बार दबा जातें तुम्हारी कड़वी बातों के गमगीन ताने... तीखी बातों की हर छौंक के साथ वेदनाओ की तेज दौंक उठती हैं भवनाओं की तेज़ लहरों की ठेस से उम्मीदों से बनी नाओ चूर चूर हो टूटती हैं... ©प्रियंका सिंह

#ताना-कशी

हाय....... तुझ पर तो मैं वारी जाऊं सखी, दोनों ही गजब निराले- "तुम और तुम्हारी ताना-कशी".... ©प्रियंका 

#कुछ_नमक_बनते_हलाली_के_नाम

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#ज्ञात_है_कुछ_बातों_का_कोई_ओर_नहीं_होता

हर सवेरे के बाद शाम- सूरज ढलता हैं.... कुछ है जो भीतर ही भीतर, हिय को खलता है.... खलती है-शांत सी पथराई ऑंखें, खलती है-हृदय में दबी हुई सी गुमसुम बातें, ज्ञात है,कुछ बातों का कोई ओर नहीं होता अनगिनत बादलों से लदे, अथाह नीलगगन का कोई छोर नहीं होता इच्छाऐ हैं,जो- लहरों सी उद्वेलित होती हैं... कुछ क्षण उपरान्त, यथार्थ के सागर में - शांत लहरों सी सोती हैं.... ©प्रियंका सिंह

#बेवजह_का_समर्पण

आज फिर तुम्हारी गुमसुम आँखे बोल उठी हैं... आँसुओं की धार,रहस्य तेरे हिय का खोल बैठी हैं.. कब तक तकलीफों की कड़वी घुंट पियोगी.. कब तक तुम यूं ही एक टूक जियोगी... जरूरी तो नहीं हर परिस्थितियॉ सामान्य हो.. जरूरी नहीं कि तुम्हारा हर त्याग समाज को मान्य हो.. हृदयहीन ये समाजिक लोग तो अंधे हैं.. नारीयों को त्यागीमूर्त बनाना, इनके चिरकालीन गतिशील धंधे हैं... बेवजह का समर्पण छोड़ दो.... अपने भाग्य से जुड़े ,दुर्भाग्य की कड़ीयॉ तोड़ दो... उठो,लड़ो..ताकी परिवर्तन की आशाऐं जिन्दा हो.. जरूरी है कि... समाज भी अपनी दोहरी मानसिकता पर शर्मिंदा हो... ©प्रियंका सिंह

#मन्नतें

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